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Chaitra Navratri Maha Navami 2024: चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन ऐसे करें माँ सिद्धिदात्री की पूजा, जानिए विशेष मंत्र, आरती और प्रिय भोग

वर्ष 2024 में 17 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का नौवां दिन है और इस दिन मां दुर्गा की 9वीं शक्ति मां सिद्धदात्री की पूजा की जाती है। जैसा कि माता के नाम से पता चलता है, यह माता ही है जो सभी प्रकार की सिद्धियाँ और उपलब्धियां सुनिश्चित करती है। मोक्ष और सफलता प्रदान करने वाली मां दुर्गा के स्वरूप को मां सिद्धिदात्री कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी मां की पूजा करने से सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं और घर में धन-धान्य की कमी नहीं होती है। मां दुर्गा के इस रूप की पूजा ऋषि-मुनि, यक्ष, देवता, राक्षस, साधक, किन्नर और घर पर आश्रम में रहने वाले भक्त करते हैं और मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं मां सिद्धदात्री का स्वरूप, पूजा विधि, पसंदीदा भोग, आरती और मंत्र।

माँ सिद्धिदात्री की पूजा का महत्त्व (Chaitra Navratri Navmi 2024)

देवी भागवत पुराण की कथानुसार, भगवान शिव ने आठ सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मां सिद्धिदात्री की पूजा की थी। उनके प्रभाव से शिव का आधा शरीर देवी का हो गया। तब भगवान शंकर ने इस रूप को अर्धनारीश्वर कहा। मां सिद्धिदात्री की पूजा से व्यक्ति को 8 सिद्धियां और 9 प्रकार की निधियां प्राप्त हो सकती हैं।

वेदों, पुराणों और शास्त्रों में मां की महिमा का वर्णन किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में मां की महिमा का विशेष गुणगान किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में माता को अष्ट सिद्धि भी कहा गया है। इसका मतलब यह है कि माता अणिमा, महिमा, प्राकाम्य गरिमा (बहुमूल्य गुण), लघिमा, प्राप्ति, ईशित्व और वशित्व अष्ट सिद्धि के पूर्ण रूप हैं। मां सिद्धिदात्री की कृपा से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वह मानव जो देवी सिद्धिदात्री का पूजन करता है, वह जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।

ऐसा है माँ सिद्धिदात्री का स्वरुप (Maa Siddhidatri Swaroop)

माँ सिद्धिदात्री का स्वरुप

मां सिद्धिदात्री संपूर्ण जगत का कल्याण करती हैं। इसी कारण से उन्हें जगत की माता भी कहा जाता है। सिद्धि और मोक्ष की दाता दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रिय लक्ष्मी की तरह कमल मुद्रा में विराजमान हैं और इनकी चार भुजाएं हैं। मां सिद्धिदात्री अपने हाथों में कमल, शंख, गदा और सुदर्शन चक्र धारण करती हैं। माता का वाहन सिंह है। नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवरस युक्त भोग, नौ प्रकार के फल, फूल आदि चढ़ाना चाहिए। माँ सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी एक रूप हैं।

देवी सिद्धिदात्री की पूजा विधि (Devi Siddhidatri Puja Vidhi)

इन मंत्रों का करें जाप (Maa Siddhidatri Mantra)

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

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सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥

माँ सिद्धिदात्री की आरती (Maa Siddhidatri ki Aarti)

जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता

तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,

तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि

तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि!!

कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम

जब भी हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,

तेरी पूजा में तो न कोई विधि है

तू जगदम्बे दाती तू सर्वसिद्धि है!!

रविवार को तेरा सुमरिन करे जो

तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,

तुम सब काज उसके कराती हो पूरे

कभी काम उसके रहे न अधूरे!!

तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया

रखे जिसके सर पर मैया अपनी छाया,

सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली

जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली!!

हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा

महा नंदा मंदिर में है वास तेरा,

मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता

वंदना है सवाली तू जिसकी दाता!

ये है माता का प्रिय भोग और रंग (Maa Siddhidatri Bhog and Color)

चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री को हलवा, पूरी, काले चने, मौसमी फल, खीर और नारियल का भोग लगाया जाता है। कहा जाता है कि  देवी की पूजा करते समय पर्पल या बैंगनी रंग पहनना सौभाग्य लाता है। यह रंग आध्यात्मिकता का प्रतीक है। नवरात्रि पर्व के नौवें दिन कन्या पूजन की परंपरा है। माता सिद्धिदात्री को चढ़ाए गए उपहार को कन्याओं और ब्राह्मणों में बांटना बहुत शुभ माना जाता है। इस प्रकार मां प्रसन्न होकर साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

चैत्र नवरात्रि के आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसी कारण से श्रद्धालु माता सिद्धिदात्री की श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करते हैं। इसके अलावा वे देवी मां के लिए व्रत भी रखते हैं। इस दिन पूजा के बाद कन्या पूजन की भी परंपरा है।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी केवल धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है जिन्हें सामान्य जनरूचि के लिए विभिन्न माध्यमों से संग्रहित किया गया है। इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। इस सूचना को उपयोग में उपयोगकर्ता स्वयं की ज़िम्मेदारी पर लें। इसका उद्देश्य किसी विशेष धर्म, सम्प्रदाय, धार्मिक एवं व्यक्तिगत विश्वासों को ठेस पहुँचाना नहीं है।

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