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Papmochani Ekadashi Vrat Katha 2024: पापमोचनी एकादशी पर करें इस व्रत कथा का पाठ, ज़रूर देखें व्रत के नियम और सावधानियां 

पापमोचनी एकादशी का व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। अधिकतर यह अप्रैल महीने के व्रत-त्योहारों में मनाई जाती है। एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। माना जाता है कि एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। आपके जीवन में आने वाली सभी परेशानियों से भी छुटकारा मिल जाएगा। आइए जानते हैं वर्ष 2024 में एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा। साथ ही जानें व्रत कथा और इस व्रत की सावधानियां।

कब है पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi Date and Timings 2024)

इस बार पापमोचनी एकादशी व्रत 5 अप्रैल को रखा जाएगा। दरअसल, एकादशी तिथि 4 अप्रैल को शाम 16:15 बजे शुरू हो रही है और अगले दिन 5 मार्च को दोपहर 1:28 बजे समाप्त हो रही है। इसलिए उदया तिथि की मान्यता के कारण पापमोचनी एकादशी व्रत 5 अप्रैल को है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा का महत्त्व (Papmochani Ekadashi Vrat Katha Mahatva)

पापमोचनी एकादशी के व्रत में व्रत कथा के पाठ का बहुत महत्त्व है। मान्यता है की ये कथा भगवान कृष्ण ने स्वयं पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। भगवान कृष्ण ने स्वयं इस व्रत का महात्मय बताते हुए कहा है की ये व्रत सभी पापों को नष्ट कर मुक्ति देने वाला है। इसलिए इसे पापमोचनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि कथा के साथ भगवान विष्णु की चालिसा का पाठ करने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha)

Papmochani Ekadashi Vrat Katha

प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक वन था। वहां किन्नरों के साथ अप्सराएं विचरण करती थीं। एक दिन उसी वन में मेधावी नामक ऋषि ने भी तपस्या की। वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा ने उन पर मोह की माया में लीन करके उनकी तपस्या भंग करने की कोशिश की। कामदेव ने मंजुघोष को ऋषि को तपस्या से विमुख करने में भी मदद की।

कामदेव के वश में थे संत को देखकर मंजुघोषा ने धीरे-धीरे वीणा पर मधुर स्वर में जप करना शुरू कर दिया और महर्षि मेधावी भी मंजुघोषा की मधुर आवाज और सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गए। महर्षि मेधावी काम के वशीभूत होकर शिव का रहस्य भूल गए और अप्सरा के साथ रहने लगे। उस समय मुनिवर को दिन और रात के बारे में कुछ ध्यान नहीं रहा। इस तरह लगभग 57 वर्ष बीत गये।

इसके बाद एक दिन मंजुघोषा ने ऋषि से कहा, “हे विप्र! मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दें। अब मेरा यहाँ रहना उचित नहीं है। तब ऋषि को एहसास हुआ की क्या हुआ है।  उस समय वे अप्सरा को काल का रूप मान बैठे। वे मनोरंजन और आमोद-प्रमोद में इतना समय नष्ट करने पर बहुत क्रोधित हुए और अप्सरा को पिशाचिनी बनने का श्राप दे दिया।

अप्सरा पिशाचिनी में बदल गई। वह चिंतित होकर ऋषि से बोली: “संतों की संगति अच्छे परिणाम देती है, मैंने आपके साथ कई साल बिताए हैं, अब आप मुझसे प्रसन्न हो जाईये, अन्यथा लोग कहेंगे कि मंजुघोषा को एक महान आत्मा के साथ रहने पर पिशाचिनी बनना पड़ा। मंजुघोषा की बातें सुनकर ऋषि को अपने क्रोध के प्रति बहुत ग्लानि महसूस हुई और उन्होंने अप्सरा को चैत्र माह के कृष्ण पक्ष में पापामोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा।

मंजुघोषा ऐसे ही करती हैं। साधु बनने के बाद मुनि मेधावी ने अत्यधिक पाप किया और अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिए उसने भी पापमोचनी एकादशी का व्रत भी किया। परिणामस्वरूप, अप्सरा अपने पिशाच शरीर से मुक्त होकर स्वर्ग चली गई और ऋषि के सभी पाप भी दूर हो गए।

पापमोचनी एकादशी व्रत नियम (Papmochani Ekadashi Vrat Ke Niyam)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। इससे अच्छे परिणाम मिलते हैं। व्रत कथा का पाठ करने और कुछ विशेष उपाय करने से जीवन की सभी चिंताओं से भी मुक्ति मिल जाती है। लेकिन पापमोचनी एकादशी के दिन कुछ कार्यों के प्रति सावधान रहना चाहिए और वे नहीं करने चाहियें। माना जाता है कि इन चीजों से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी केवल धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है जिन्हें सामान्य जनरूचि के लिए विभिन्न माध्यमों से संग्रहित किया गया है। इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। इस सूचना को उपयोग में उपयोगकर्ता स्वयं की ज़िम्मेदारी पर लें। इसका उद्देश्य किसी विशेष धर्म, सम्प्रदाय, धार्मिक एवं व्यक्तिगत विश्वासों को ठेस पहुँचाना नहीं है।

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