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Varuthini Ekadashi Vrat Katha: वरूथिनी एकादशी पर ज़रूर पढ़ें ये व्रत कथा! जानिए कैसे शुरू हुई इस व्रत की परंपरा 

एकादशी तिथियां ब्रह्मांड के संरक्षक भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वैशाख माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। वरूथिनी एकादशी के दिन, भक्त भगवान विष्णु के साथ-साथ देवी लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं। इसके अलावा, वे जीवन में सुख और शांति के लिए व्रत रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर आप एकादशी के दिन भगवान की पूजा करते हैं तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। पूजा के दौरान वरूथिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। आइये जानते हैं कैसे प्रारंभ हुआ वरूथिनी एकादशी का व्रत और क्या है वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा।

कब है वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi Date 2024)

सनातन धर्म में हर वर्ष आने वाली वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि वरूथिनी एकादशी नाम से जाती है। वर्ष 2024 में वरूथिनी एकादशी का व्रत 4 मई के दिन शनिवार को रखा जाएगा। इस वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वालों को कन्यादान के बराबर फल मिलता है। इस व्रत के महात्म्य को दोहराने से एक हजार गायें दान करने का पुण्य प्राप्त होता है।

वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा (Varuthini Ekadashi Vrat Katha in Hindi)

वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा

प्राचीन काल में मांधाता नामक राजा नर्मदा नदी के तट पर राज्य करते थे। वह बहुत दयालु और तपस्वी था। एक दिन, जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी कहीं से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पहले की तरह तप में डूबे रहे। कुछ देर बाद, भालू ने राजा के पैरों को चबाते हुए उन्हें जंगल में खींच लिया।

राजा बहुत भयभीत हुए, लेकिन क्रोधित होने और हिंसा का सहारा लेने के बजाय, उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और करुणा से परिपूर्ण होकर भगवान विष्णु से मदद मांगने लगा। उसने भगवान विष्णु से प्राण बचाने की प्रार्थना की। जब भगवान ने उसकी पुकार सुनी तो वे वहां प्रकट हुए और भालू को मारकर राजा की जान बचाई। वह जंगली भालू पहले ही राजा का पैर खा चुका था जिस कारण राजा बहुत दुःख में था। जब श्री नारायण ने उसे पीड़ा में देखा, तो उन्होंने कहा, “हे राजन, शोक मत करो!” तुम मथुरा की ओर प्रस्थान करो, वहां पर वरूथिनी एकादशी का व्रत करो और मेरे वराह रूप का पूजन करो। यह व्रत अत्यंत फलदायी है, इसके प्रभाव से तुम पुनः स्वस्थ हो जाओगे। उस भालू ने जो तुम्हें काटा वह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध है।

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता मथुरा गये और वरूथिनी एकादशी का व्रत भक्तिपूर्वक किया। उसके प्रभाव के कारण, राजा जल्द ही फिर से सुंदर हो गया और उसके अंग उत्तम हो गए। इसी एकादशी के प्रभाव से मृत्यु पश्चात राजा मांधाता स्वर्ग पहुंचे। तभी से इस व्रत की परंपरा चली आ रही है। चिंता से पीड़ित व्यक्ति यदि वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करता है तो इस व्रत को करने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वरूथिनी एकादशी की महिमा (Varuthini Ekadashi Ka Mahatva)

ऐसा माना जाता है कि जो लोग वरूथिनी एकादशी का व्रत श्रद्धा और पूर्ण समर्पण से करते हैं, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसका लाभ गंगा स्नान से भी अधिक है। चूँकि एकादशी स्वयं विष्णु प्रिया है, इस दिन उपवास, तप और दान के माध्यम से सभी जीव श्री हरि के भक्त बन जाते हैं और जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। भक्त जप और तपस्या के माध्यम से उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। यह व्रत तेजवान और पुण्य-प्रताप प्रदान करने वाला है और इससे आप मनवांछित वर प्राप्त कर सकते हैं। जो लोग अपने धर्म के अनुसार जीवन जीते हैं उन्हें कोई समस्या एवं बाधा परेशान नहीं करती। पौराणिक मान्यता के अनुसार, एकादशी में ब्रह्महत्या सहित सभी पापों को नष्ट करने की शक्ति होती है। इस दिन मन, कर्म और वाणी से किसी भी प्रकार के पाप से बचना चाहिए और तामसिक भोजन  से बचना चाहिए।

वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी मनाई जाती है। वरूथिनी एकादशी के दिन भक्त सभी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, ध्यान करते हैं और श्री हरि विष्णु की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह एकादशी लोगों के लिए सौभाग्य लेकर आती है और व्रत रखने से लोगों को लाभकारी परिणाम प्राप्त होते हैं। वरूथिनी एकादशी के प्रभाव से ही राजा मांधाता स्वर्ग पहुंचे। इसके बाद से वरूथिनी एकादशी मनाने और इसका व्रत करने की पावन परंपरा चली आ रही है।

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी केवल धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है जिन्हें सामान्य जनरूचि के लिए विभिन्न माध्यमों से संग्रहित किया गया है। इस लेख में निहित किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। इस सूचना को उपयोग में उपयोगकर्ता स्वयं की ज़िम्मेदारी पर लें। इसका उद्देश्य किसी विशेष धर्म, सम्प्रदाय, धार्मिक एवं व्यक्तिगत विश्वासों को ठेस पहुँचाना नहीं है।

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