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Shiv Chalisa Meaning in Hindi: चालीसा पाठ से होते हैं भोलेनाथ प्रसन्न! जानिए शिव चालीसा का अर्थ

Shiv Chalisa Meaning in Hindi

Shiv Chalisa in Hindi: सनातन धर्म में भक्त मंत्रों और स्तोत्रों के माध्यम से अपने देवताओं की पूजा करते हैं। जैसे की विष्णु मंत्र, दुर्गा मंत्र आदि। भगवान की भक्ति के लिए बताए गए नियमों में इन मंत्रों और स्तोत्रों का बहुत महत्व है। स्तोत्रों और मंत्रों की भाषा थोड़ी कठिन थी, इसलिए ईश्वर  की पूजा करने के लिए चालीसा की रचना की गयी। शिव चालीसा में भोलानाथ की महिमा का अद्वितीय वर्णन किया गया है। उसको समझने के लिए चालीसा का अर्थ जानना बेहद ज़रूरी है। आइये शिव चालीसा का अर्थ जानते हैं।

शिव चालीसा अर्थ (Shiv Chalisa Meaning in Hindi)

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

अर्थ – पार्वती जी के पुत्र, समस्त मंगलो के ज्ञाता श्री गणेश की जय हो। मैं अयोध्यादास आपसे वर मांगता हूँ।

॥चौपाई॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

अर्थ – पार्वती( गिरिजा) जी के स्वामी, आपकी जय हो! आप दीन लोगों पर दया करते हैं और साधु-संतजनों की रक्षा करते हैं। हे त्रिशूलधारी, नीलकण्ठ! आपके मस्तक पर चन्द्रदेव सुशोभित है और  कानो में नागफनी के कुण्डल शोभायमान हैं। आप गौर वर्णी हैं और सिर की जटाओं में गंगा बह रही हैं, गले में मूण्डमाला है और शरीर पर भस्म लगा रखी है। हे त्रिलोकी! आपके वस्त्र बाघ की खाल(बाघम्बर) के हैं। आपकी शोभा देखकर नाग और मुनिजन मोहित हो रहे हैं।

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

अर्थ – माता मैना की प्रिय पुत्री पार्वतीजी आपके वामांग ( बाएँ ओर) में सुशोभित हैं, यह छवि अत्यंत निराली है और  सौंदर्य अत्यंत अनुपम है। आपके हाथ में त्रिशूल सुन्दर छवि से चमकता है, इसलिए आप सदैव शत्रुओं का संहार करते रहते हैं। आपके वाहन नंदी और गणेशजी समुद्र में खिले हुए कमल के समान शोभायमान हैं। वहाँ कार्तिकेयजी और उनका दल बैठा हुआ था। इस दृश्य की सुन्दरता का वर्णन कोई नहीं कर सकता।

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

अर्थ – हे त्रिपुरारी जी ! जब भी देवता सहायता के लिए पुकारते हैं, हे प्रभु! आप अविलम्ब उनका दुःख दूर कर देते हैं। जब ताडकासुर अत्याचार करने लगा तो सभी देवता आपसे सुरक्षा की प्रार्थना करने लगे। आपने उसी समय अपने पुत्र कार्तिकेय जी को वहाँ भेजा और उन्होंने पलक झपकते ही राक्षस को मार डाला। आपने जलंधर नाम के  भयानक राक्षस का वध किया। आपने इससे जो यश फैलाया, उसे सारा संसार जानता है।

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

अर्थ – त्रिपुर राक्षस से युद्ध करके आपने देवताओं को आशीर्वाद दिया और उन्हें अनिष्ट के भय से मुक्त कर दिया। राजा भगीरथ के पश्चाताप करने पर आपने अपनी जटा में निवास कर रही गंगा को चले जाने का आदेश दिया। भागीरथ का वचन आपके कारण ही पूरा हुआ है। कोई भी  दाता आपकी बराबरी नहीं कर सकता। भक्त हमेशा आपके गुण-गुण गाते रहते हैं। वेदों में भी आपकी महिमा का अद्वितीय वर्णन है। लेकिन अनंत काल के लिए, कोई भी आपके रहस्य का पता नहीं लगा सकता।

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

अर्थ – समुद्र मंथन से निकली विष की लपटों ने देवताओं और दानवों को बेचैन कर दिया। हे नीलकंठ! तब आपने उनकी सहायता के लिये वह प्रबल विष भी पी लिया। तब से आपका नाम नीलकंठ हो गया। लंका पर आक्रमण करने से पहले श्री राम ने आपका पूजन करके विजय प्राप्त की थी और विभीषण जी  को लंका का राजा बनाया था। हे महादेव! जब श्री रामचन्द्र जी ने सहस्रों कमल पुष्पों से आपकी पूजा की, तब आपने पुष्पों के मध्य रहकर उनकी परीक्षा ली।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

अर्थ – आपने अपनी माया से एक कमल का पुष्प छिपा दिया। तब रामचन्द्र जी ने नेत्र रूपी कमल से  पूजा करने का विचार किया। अत: जब भगवान शिव ने श्री रामचन्द्र का अपने प्रति अटूट विश्वास देखा तो प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित वरदान दिया। हे शिव,आप तो अनादि और अमर हैं। आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप सभी के ह्रदय में निवास करते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। बुरे विचार मुझे हमेशा परेशान करते हैं, मुझे भ्रम और बेचैनी की स्थिति में छोड़ देते हैं।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥

अर्थ – हे नाथ! मेरी रक्षा करो, मेरी रक्षा करो!  मैं आपको पुकार रहा हूं। आप आकर मुझे संकटों व कष्टो से उबारें। हे पापसंहारक! अपने त्रिशूल से मेरे शत्रुओं को नष्ट करो और संकट से मेरा उद्धार कर मुझे भवसागर से पार लगाओ। माता-पिता, भाई-बंधु सब सुख के साथी हैं। दुखों में कोई भी  साथ नहीं देता है, संकट आने पर भी  कोई नहीं पूछता। हे स्वामी! मुझे तो केवल आपसे ही उम्मीद है, आप पर ही विश्वास है। आप ही आकर मेरा घोर संकट तथा कष्ट दूर करें।

धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

अर्थ – आप सदा निर्धनों की धन द्वारा सहायता करते हैं। आपसे जिस फल की कामना की जाती है वही फल प्राप्त होता है। आपकी पूजा-अर्चना कैसे की जाती है, हमें तो यह भी मालूम नहीं। अतः हमारी जो भी भूल-चूक हुई हो उसे क्षमा कर दें। आप ही कष्टों को नष्ट करने वाले हैं। सभी शुभ कार्यो को कराने वाले हैं तथा सब विध्न-बाधाओं को दूर करके कल्याण करते हैं। योगी, यति और मुनि सभी आपका ध्यान करते हैं। नारद मुनि और देवी सरस्वती (शारदा) भी आपको नमन करते हैं।

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

अर्थ – ‘ॐ नमः शिवाय’ इस पञ्चाक्षर मंत्र का जाप करके भी ब्रह्मा आदि देवता आपकी महिमा का पार नहीं प सके। जो कोई भी मन तथा निष्ठा से शिव चालीसा का पाठ करता है, शंकर भगवान उसकी सहायता कर उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। हे करुणानिधान! कर्ज के बोझ से दबा हुआ वयक्ति आपके नाम का जाप करे तो वह ऋण-मुक्त हो सुख-समृद्धि प्राप्त करता है। जो कोई भक्त पुत्र प्राप्ति की कामना से पाठ करता है,  आपकी कृपा से उसे पुत्र-रत्न प्राप्ति होती है।

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

 कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

अर्थ – हर श्रद्धालु तथा भक्त ओ प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को विद्वान पण्डित को बुलाकर पूजा तथा हवन करवाना चाहिए।  जो भक्त सदैव त्रयोदशी का व्रत करता है, उसके शरीर में कोई रोग नहीं रहता और किसी प्रकार का क्लेश भी मन में नहीं रहता। धूप-दीप और नैवेध से पूजन करके शिवजी की मूर्ति या चित्र के सम्मुख बैठकर शिव चालीसा का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए।इससे जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मनुष्य शिवलोक में वास करने लगता है अथार्त मुक्त हो जाता है। अयोध्यादासजी कहते हैं कि शंकर भगवान, हमें आपसे ही आशा है। आप हमारी मनोकामनाएं पूरी करके हमारे दुखों को दूर करें।

॥दोहा॥

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

अर्थ – शिव चालीसा का  प्रतिदिन पाठ करने से भगवान मनोकामना पूर्ण करते हैं। मृगशिर मास कि छ्ठी तिथि हेमंत ऋतु संवत ६४ में यह चालीसा रूपी शिव स्तुति लोक कल्याण के लिए पूर्ण हुई।

वैसे तो काल के नियामक महादेव की पूजा हर दिन करनी चाहिए। लेकिन ऐसा माना जाता है कि जो भी सोमवार के दिन सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करता है उसे उनकी कृपा अवश्य प्राप्त होती है। इस दिन विशेष रूप से शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए क्योंकि इससे भक्तों को दोगुना लाभ मिलता है।

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