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Magha Purnima Vrat Katha 2024: माघ पूर्णिमा व्रत कथा और कहानियां

Magha Purnima Vrat Katha: भगवान शिव को समर्पित माघ पूर्णिमा का व्रत सभी व्रतों में सबसे लाभदायी और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है और इसे विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। कई जगह इस व्रत को माघी पूर्णिमा का नाम से भी जाना जाता है। मगर कोई भी व्रत तब तक पूरा नहीं होता जब तक उस व्रत की कथा और महत्व न मालुम हो। तो चलिए आपको इस लेख में माघ पूर्णिमा की कथा के बारे में बताते हैं।

माघ पूर्णिमा व्रत कथा (Magha Purnima Vrat Katha) – 1

माघ पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण हिन्दी त्योहार है जो हिन्दू कैलेंडर के माघ मास में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा की जाती है और भक्तगण उनकी कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करते हैं। इस व्रत की कथा मानव जीवन को सुख-शांति और आनंद से भर देने वाली है।

कहते हैं कि कभी-कभी भगवान शिव अपने भक्तों का संग भूल जाते हैं और वे पृथ्वी पर अवतार लेकर अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान करते हैं। माघ पूर्णिमा व्रत की कथा भी एक ऐसी ही घटना पर आधारित है।

बहुत समय पहले, एक गाँव में एक ब्राह्मण थे जिनका नाम देवशर्मा था। वह बहुत ही धार्मिक और भक्तिभाव से भरा हुआ था। एक दिन उसने अपने गाँव में एक साधु को देखा जो भूखा-प्यासा दिख रहा था। देवशर्मा ने उसे अपने घर बुलाया और उसको भोजन दिया। साधु ने ब्राह्मण को धन्यवाद दिया और बोला, “तुमने मुझे भोजन दिया है, इसके बदले मैं तुम्हें एक विशेष व्रत की कथा सुनाऊंगा जिसे तुम माघ पूर्णिमा के दिन रखना चाहिए।”

उस साधु ने ब्राह्मण को बताया कि माघ पूर्णिमा के दिन भगवान शिव का विशेष पूजन करना चाहिए। उन्होंने कहा, “माघ मास के पूर्णिमा दिन तुम्हें समुद्र के किनारे जाना चाहिए और वहां शिव मंदिर में जाकर शिव लिंग की पूजा करनी चाहिए। इससे तुम्हारी सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और तुम्हें शिव का आशीर्वाद प्राप्त होगा।”

ब्राह्मण ने साधु की बात मानी और माघ पूर्णिमा के दिन समुद्र के किनारे जाकर भगवान शिव की पूजा की। उसके बाद से ही उसका जीवन सुख-शांति से भर गया। उसकी सारी समस्याएं दूर हो गईं और उसे भगवान शिव का अद्भुत आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि माघ पूर्णिमा का व्रत रखकर हम अपने जीवन को सुखी और शांतिपूर्ण बना सकते हैं। इस विशेष दिन पर भगवान शिव की पूजा करने से हमारी समस्याएं दूर हो सकती हैं और हम आनंदपूर्वक जीवन जी सकते हैं। इसलिए, माघ पूर्णिमा पर भगवान शिव की पूजा और व्रत अपनी आदतों में शामिल करें और दिव्य आशीर्वादों का अनुभव करें।

माघ पूर्णिमा व्रत कथा (Magha Purnima Vrat Katha) – 2

एक समय की बात है, एक बार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण था, वह अपना जीवन भिक्षा लेकर ही यापन करता था। मगर उस ब्राह्मण की पत्नी की कोई संतान नहीं थी। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान मिला। मगर एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन लोगों ने उसे बांझ कहकर ताने मारे और भिक्षा देने से मना कर दिया। इससे वो बहुत दुखी हुई। यह देख कर एक व्यक्ति ने ब्राह्मणी को 16 दिन मां काली की पूजा करने को कहा।

ब्राह्मण दंपत्ति ने उस व्यक्ति की बात मान ली और नियम अनुसार मां काली का 16 दिनों तक पूजन किया। 16वें दिन पूजा करने के बाद मां काली उनसे बेहद प्रसन्न हुईं और वह प्रकट होकर ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया और कहा कि तुम पूर्णिमा को एक दीप जलाओ और  हर पूर्णिमा पर ये दीपक बढ़ाती जाना। जब तक कम से कम 32 की संख्या न हो जाएं। साथ ही दोनों दांपत्यों को पूर्णिमा का व्रत रखने को भी कहा। ब्राह्मण दंपत्ति ने माता के कहे अनुसार ही पूर्णिमा को दीपक जलाना शुरू कर दिया और दोनों पूर्णिमा को व्रत रखने लगे। इसी बीच ब्राह्मणी गर्भवती भी हो गई और कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम देवदास रखा, लेकिन देवदास अल्पायु था।

देवदास जब बड़ा हुआ, तो उसे पढ़ने के लिए अपने मामा के घर काशी भेजा गया। काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी। जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया। कुछ समय बाद उसकी मृत्यु के क्षण नजदीक आने लगे, लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने उस दिन पुत्र प्राप्ति के लिए पूर्णिमा का व्रत रखा था, जिस कारण काल चाहकर भी उसका कुछ न बिगाड़ सका और उसे जीवनदान मिला। इस तरह पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सभी संकटों से छुटकारा मिल सकता है और सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो सकती है। तभी से माघ पूर्णिमा के व्रत को बहुत महत्व दिया जाने लगा।

अगर आप भी माघ पूर्णिमा का व्रत कर रहे हैं तो यहाँ दी गयी व्रत कथा जरूर पढ़ें और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें।

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