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Pradosh Vrat Shubh Muhurat or Puja Vidhi 2024: प्रदोष व्रत कब है, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Pradosh Vrat Kab Hai 2024: प्रदोष व्रत एक हिन्दू व्रत है, भगवान शिव को समर्पित यह व्रत भगवान शिव और माँ  पार्वती की कृपा प्राप्त करने और मनोकामना पूर्ण करने वाला माना जाता है। इस व्रत को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जब सूर्यास्त के बाद विशेष समय को ‘प्रदोष काल’ कहा जाता है। यह व्रत मासिक और कार्तिक मास की प्रदोष के दिनों में विशेषता से किया जाता है। तो चलिए आपको इस लेख में बताते हैं प्रदोष व्रत कब है, प्रदोष व्रत का महत्व, पूजा विधि और प्रदोष व्रत करने के लाभ के बारे में।

प्रदोष व्रत कब है (Pradosh Vrat Kab Hai 2024)

प्रदोष व्रत साल 2024 में 7 फरवरी दिन बुधवार को पड़ेगा। यह व्रत करने से मन की सभी इच्छाएं पूरी होती है और माँ पार्वती और भगवान भोलेशंकर का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

प्रदोष व्रत का महत्व (Pradosh Vrat Ka Mahatva)

भारतीय सांस्कृतिक और परंपरा में व्रत और त्योहारों का अत्यधिक महत्व है, जो लोगों को धार्मिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन करते हैं। एक ऐसा महत्वपूर्ण व्रत है “प्रदोष व्रत”, जो भगवान शिव की पूजा और उनकी कृपा को प्राप्त करने का अद्वितीय अवसर प्रदान करता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति अपने जीवन में शान्ति, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति कर सकता है।

प्रदोष व्रत का समय (Pradosh Vrat Puja Timings in Hindi)

प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को दो प्रकार से मनाया जाता है – प्रभास के प्रदोष और सौराष्ट्र के प्रदोष। इनमें से किसी भी प्रदोष व्रत को बड़े भक्ति भाव से मनाने पर विशेष कृपा प्राप्त होती है। विभिन्न स्थानों पर इस व्रत के लिए शुभ मुहूर्त अलग-अलग होते हैं, लेकिन सामान्यत: इसे सायंकाल के समय, सूर्यास्त के बाद आरंभ किया जाता है। 

प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त (Pradosh Vrat Shubh Muhurat 2024)

प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त समय: संध्याकाल ठीक 6 बज कर 5 मिनट से 8 बज कर 41 मिनट तक है। 

प्रदोष व्रत पूजा विधि (Pradosh Vrat Puja Vidhi 2024)

Pradosh Vrat Vidhi

प्रदोष व्रत के फायदे (Pradosh Vrat Ke Fayde)

प्रदोष व्रत में करें शिव मंत्र (Pradosh Vrat Shiv Mantra 2024)

श्री सांबसदाशिवाय नम:

श्री रुद्राय नम:

ओम पार्वतीपतये नम:

ओम नमो नीलकण्ठाय नम:

प्रदोष व्रत में पढ़ें शिव चालीसा (Pradosh Vrat Shiv Chalisa 2024)

॥ दोहा ॥

जय गणेश गिरिजा सुवन,

मंगल मूल सुजान ।

कहत अयोध्यादास तुम,

देहु अभय वरदान ॥

 

॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला ।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।

कानन कुण्डल नागफनी के ॥

अंग गौर शिर गंग बहाये ।

मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।

छवि को देखि नाग मन मोहे ॥

मैना मातु की हवे दुलारी ।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।

सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ ।

या छवि को कहि जात न काऊ ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा ।

तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥

किया उपद्रव तारक भारी ।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥

तुरत षडानन आप पठायउ ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥

आप जलंधर असुर संहारा ।

सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥

किया तपहिं भागीरथ भारी ।

पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।

सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।

जरत सुरासुर भए विहाला ॥

कीन्ही दया तहं करी सहाई ।

नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥

सहस कमल में हो रहे धारी ।

कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।

कमल नयन पूजन चहं सोई ॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।

भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी ।

करत कृपा सब के घटवासी ॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।

येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।

संकट से मोहि आन उबारो ॥

मात-पिता भ्राता सब होई ।

संकट में पूछत नहिं कोई ॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी ।

आय हरहु मम संकट भारी ॥

धन निर्धन को देत सदा हीं ।

जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥

शंकर हो संकट के नाशन ।

मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।

शारद नारद शीश नवावैं ॥

नमो नमो जय नमः शिवाय ।

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥

जो यह पाठ करे मन लाई ।

ता पर होत है शम्भु सहाई ॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।

पाठ करे सो पावन हारी ॥

पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।

निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे ।

ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।

ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।

शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥

जन्म जन्म के पाप नसावे ।

अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।

जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥

 

॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही,

पाठ करौं चालीसा ।

तुम मेरी मनोकामना,

पूर्ण करो जगदीश ॥

 

मगसर छठि हेमन्त ॠतु,

संवत चौसठ जान ।

अस्तुति चालीसा शिवहि,

पूर्ण कीन कल्याण ॥

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