हिन्दू धर्म में माता सरस्वती का प्रमुख त्रिदेवियों में स्थान है। माता सरस्वती को वागीश्वरी, शारदा और वीणावादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित जाता है। माता सरस्वती के रूप का अगर वर्णन करें तो वे सदैव मुख पर चन्द्रमा की शोभा धारण किये हुए कमल-नयनों वाली हैं। उनके कर कमलों में वीणा और कमंडल होता है साथ ही उनके कई चित्रों में उनके हाथों में वेद भी दिखाई देते हैं। माता सरस्वती की पूजा में चालीसा पाठ किया जाता है।आज के लेख में आप जानेंगे की माता सरस्वती की पूजा में चालीसा का महत्त्व क्या है, चालीसा का पाठ कैसे करना है।
श्री सरस्वती चालीसा का महत्त्व (Saraswati Chalisa Significance in Hindi)
माता सरस्वती हर प्रकार की विद्या एवं ज्ञान की प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने की वजह से देवी सरस्वती संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। मान्यता है की माता सरस्वती की कृपा से ही व्यक्ति विद्यावान और ज्ञानवान होता है और जिसपर उनकी विशेष कृपा होती है वह व्यक्ति उच्च कोटि का विद्वान बनता है। माता सरस्वती की पूजा में सरस्वती वंदना और श्री सरस्वती चालीसा अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। बसंत पंचमी की पूजा में भी माता सरस्वती चालीसा के पाठ का महत्त्व है।
श्री सरस्वती चालीसा के लाभ (Saraswati Chalisa ke Fayde)
- बौद्धिक क्षमताओं के विकास और मन की चिंता और खराब स्वास्थ्य को दूर करने के लिए सरस्वती साधना से विशेष लाभ होता है।
- माता सरस्वती की पूजा से व्यक्ति का मानसिक दृष्टिकोण से विकास होता है।
- व्यक्ति में ज्ञान के अभाव की पूर्ति होती है।
- मनुष्य में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है और नकारात्मकता दूर होती है,
- माता सरस्वती व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से भी शक्ति प्रदान करती है ताकि उसमे नए ज्ञान को प्राप्त करने की इच्छाशक्ति उभरे।
- सरस्वती साधना से मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले रोगों जैसे अनिद्रा, सिरदर्द, तनाव आदि से शांति मिलती है।
- माता सरस्वती की कृपा से बुद्धिमता का बहुमूल्य वरदान मिलता है।
श्री सरस्वती चालीसा लिरिक्स (Saraswati Chalisa Lyrics in Hindi)
||दोहा ||
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हंतु॥
|| चौपाई ||
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुज धारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती। तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥
तब ही मातु का निज अवतारी। पाप हीन करती महतारी॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा। तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामचरित जो रचे बनाई। आदि कवि की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्वाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्ह न और रहेउ अवलंबा। केव कृपा आपकी अंबा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करहिं अपराध बहूता। तेहि न धरई चित माता॥
राखु लाज जननि अब मेरी। विनय करउं भांति बहु तेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधुकैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥
समर हजार पाँच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला। बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। क्षण महु संहारे उन माता॥
रक्त बीज से समरथ पापी। सुरमुनि हदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा। बारबार बिन वउं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा। क्षण में बाँधे ताहि तू अंबा॥
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा। सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित को मारन चाहे। कानन में घेरे मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करई न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुंदर गुण ईशा॥
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करैं हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें सत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाँधि हेतु भवानी। कीजै कृपा दास निज जानी॥
॥दोहा॥
मातु सूर्य कांति तव, अंधकार मम रूप।डूबन से रक्षा करहु परूं न मैं भव कूप॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥
इस चालीसा का पाठ कभी भी किया जा सकता है। विशेषकर सरस्वती पूजा के दिन इसका पाठ करना चाहिए। इसके पाठ से माता सरस्वती अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं। जिस ज्ञान के बल पर पूरी दुनिया को जीता जा सकता है, उस प्रबल ज्ञान की धात्री देवी की पूजा हमें अवश्य करनी चाहिए।
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