हर साल माघ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी की जयंती बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में रविदास जयंती 24 फरवरी, शनिवार के दिन मनाई जाएगी। इस दिन संत रविदास के भक्त बड़ी संख्या में एकत्रित होकर भव्य कार्यक्रम आयोजित करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। संत रविदास की जन्मतिथि पर इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ इतिहासकार संत रविदास की जन्मतिथि 1398 ई। बताते हैं, तो कुछ 1482 ई। बताते हैं। संत रविदास ने जीवन भर अपनी शिक्षाओं से भारतीयों का मार्गदर्शन कियाऔर आज भी हम उनकी शिक्षाओं को उनके दोहों और कविताओं के माध्यम से स्वीकार करते हैं। आइए अब पढ़ते हैं संत रविदास के अनमोल विचार।
संत रविदास जी के अनमोल विचार (Sant Ravidas ji ke Anmol Vichar)
हमें हमेशा अपना कर्म करते रहना चाहिए और अपने कर्म का फल पाने की आशा कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है और फल पाना हमारा सौभाग्य है।
जिस हृदय में किसी के प्रति शत्रुता, लोभ या द्वेष नहीं होता, उसी हृदय में भगवान का वास होता है।
कभी भी अपने आप पर अभिमान मत करो। यह एक छोटी चींटी चीनी के दाने इकट्ठा कर (बीनना) सकती है, लेकिन विशाल काया वाला हाथी ऐसा नहीं कर सकता।
जीव मोह-माया में फंसकर भटकता रहता है। जो यह माया रचता है वही मुक्ति देता है अर्थात माया को बनाने वाला ही मुक्तिदाता है।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।
अर्थ- रविदास जी कहते हैं कि किसी व्यक्ति की पूजा सिर्फ इसलिए नहीं की जानी चाहिए क्योंकि वह एक सम्मानजनक पद पर है। जो व्यक्ति इस पद के लिए योग्य नहीं है उसकी पूजा नहीं की जानी चाहिए। इसके विपरीत, यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसके पास उच्च पद और प्रतिष्ठा नहीं है, लेकिन उच्च प्रतिभा है, तो उस व्यक्ति का सम्मान अवश्य किया जाना चाहिए।
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच।।
अर्थ- रविदास जी कहते हैं कि किसी भी जाति में जन्म लेने से कोई भी व्यक्ति छोटा या नीच नहीं होता। किसी व्यक्ति को उसके कर्म ही निम्न बनाते हैं। इसलिए हमें अपने कार्यों में सदैव सावधान रहना चाहिए। हमारे कार्य सदैव सम्मानजनक और ऊंचे होने चाहिए।
संत रविदास जी के दोहे (Guru Ravidas ji ke Dohe)
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
अर्थ- इस कहावत के जरिए एक बार फिर रविदास जी मन की पवित्रता पर जोर देते हैं। रविदास कहते हैं, जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा एक कठौती में भी आ जाती हैं।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।
अर्थ- राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।
संत रविदास जी के अनमोल वचन (Sant Ravidas ji ke Anmol Vachan)
यदि आपमें ज़रा भी अभिमान नहीं है, तो आपका जीवन निश्चित रूप से सफल होगा, जैसे एक विशाल हाथी चीनी के दो दाने नहीं उठा सकता, लेकिन एक छोटी सी चींटी आसानी से चीनी के दो दाने उठा सकती है।
ईश्वर केवल आत्मा में रहता है। यदि आपके मन में किसी के प्रति कोई शत्रुता नहीं है, मन में कोई स्वार्थ या द्वेष नहीं है तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे पवित्र विचार वाले मन में सदैव भगवान का वास होता है।
जिस प्रकार तेज हवाओं के कारण समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं और फिर समुद्र में ही विलीन हो जाती हैं, उनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। उसी प्रकार ईश्वर के बिना मनुष्य का कोई अस्तित्व नहीं है।
भ्रम के कारण सांप और रस्सी तथा सोने के गहने और सोने में अंतर नहीं जाना जाता, लेकिन जैसे ही भ्रम दूर हो जाता है वैसे ही अंतर ज्ञात होने लगता है। इसी तरह अज्ञानता के हटते ही मानव आत्मा, परमात्मा का मार्ग जान जाती है, तब परमात्मा और मनुष्य में कोई भेदभाव वाली बात नहीं रह जाती।
संत रविदास की जन्मतिथि को रविदास जयंती के नाम से जाना जाता है। इस विभूति का जन्म 14वीं शताब्दी के भक्ति काल में माघी पूर्णिमा के दिन रविवार को काशी के मंडुआडी गांव में रघु और कर्माबाई के परिवार में हुआ था। हालाँकि उन्होंने चर्कामकारी का काम करने का अपना पैतृक पेशा चुना, लेकिन अपनी रचनाओं से उन्होंने समाज की जो नींव रखी, वह सचमुच अद्भुत है। पेशे से चर्मकार रविदास जी ने अपनी जीविका पैसा कमाकर नहीं बल्कि साधु-संतों की सेवा करके अर्जित की। संत रविदास जी भगवान की भक्ति में पूर्ण विश्वास रखते थे। उनकी वाणी की मधुरता और ज्ञान से हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। वे आज भी जो शब्द, कविताएँ, छंद और अनमोल विचार बोलते रहते हैं, वे हम सभी को आगे बढ़ने का मार्ग प्रदान करते हैं।
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