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Sankashti Chaturthi Vrat Katha: संतान प्राप्ति से लेकर पति की दीर्घ आयु के लिए पढ़ें यहाँ दी गयी सकट चौथ व्रत कथा

किसी भी व्रत और पूजा को कथा के बिना अधूरा माना जाता है। पौराणिक नियमों के अनुसार किसी भी व्रत का संपूर्ण फल आपको तभी मिलता है जब आप इसे पूरे विधि विधान से करें, ऐसे में व्रत के दिन कथा जरूर पढ़नी चाहिए। सकट चौथ व्रत हिन्दू धर्म में एक प्रमुख व्रत है, जो विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित है। यह व्रत भारत में विशेष रूप से बड़े श्रद्धा भाव से किया जाता हैं। अगर आप भी सकट व्रत कर रहे हैं तो यहाँ दी गयी सकट चौथ व्रत कथा पढ़ सकते हैं।

सकट चौथ व्रत कथा – 1 (Sakat Chauth ki Vrat Katha)

एक समय की बात है, एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। वह हमेशा धर्म, कर्म और पुण्य के काम करते थे। मगर उन साहूकार और साहूकारनी की कोई संतान नहीं थी। जिस कारण वहअत्यंत दुखी रहते थे।

एक दिन साहूकारनी अपनी पड़ोसन के घर गयी। उस दिन उनकी पड़ोसन का सकट चौथ का व्रत था। वह सकट चौथ की पूजा करके कहानी सुना रही थी।

साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा, “तुम क्या कर रही हो?”

तब पड़ोसन बोली, “आज चौथ का व्रत है, इसलिए कहानी सुना रही हूँ।”

तब साहूकारनी बोली, “चौथ के व्रत करने से क्या होता है? इस व्रत के करने से कौन सी कौन सी मनोकामना पूर्ण होती है?”

इसके जवाब स्वरुप साहूकारनी की पड़ोसन ने कहा, “सकट चौथ का व्रत विघ्नहर्ता भगवान् गणेश के लिए किया जाता है। इसे करने से जीवन में संतान प्राप्ति होती है, पति और पुत्र को लम्बी आयु प्राप्त होती है और अन्न, धन, सुहाग सब सुखदायी बना रहता है।”

अपनी पड़ोसन की बात सुन कर साहूकारनी भाव विभोर हो गयी। तब साहूकारनी ने कहा की यदि मेरा गर्भ रह जाये तो में सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत विधि विधान से करुँगी। तब कुछ दिनों में मलूम चला की भगवान् श्री गणेश की अपार कृपा साहूकारनी पर हुई और साहूकारनी के गर्भ रह गया। तो वह बोली कि मेरे लड़का हो जाये, तो में ढाई सेर तिलकुट करुँगी।

कुछ दिन बाद उसके लड़का हो गया, तो वह बोली कि हे चौथ भगवान! मेरे बेटे का विवाह हो जायेगा, तो सवा पांच सेर का तिलकुट करुँगी। कुछ सालों के बाद साहूकारनी के बेटे का विवाह तय हो गया और उसका बेटा विवाह करने चला गया। लेकिन उस साहूकारनी ने तिलकुट नहीं किया। इस कारण से चौथ देव क्रोधित हो गये और उन्होंने फेरों से उसके बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। तब सभी वर को खोजने लगे पर वह नहीं मिला। निराश और हतास होकर सारे लोग अपने-अपने घर को लौट गए।

इधर जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था, वह अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजने के लिए जंगल में दूब लेने गयी। उसी वक़्त रास्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आई: ओ मेरी अर्धब्यहि! यह बात सुनकर जब लड़की घर आयी, उसके बाद वह धीरे-धीरे सूख कर काँटा होने लगी। तब लड़की की माँ ने कहा मैं तुम्हें अच्छा खिलाती हूँ, अच्छा पहनाती हूँ, फिर भी तू सूखती जा रही है? ऐसा क्यों? तुझे यहाँ किसी बात की कमी नहीं है फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है तेरे साथ? तब लड़की अपनी माँ से बोली कि वह जब भी दूब लेने जंगल जाती है, तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है कि ओ मेरी अर्धब्यहि। उसने मेहँदी लगा रखी है और सेहरा भी बांध रखा है।

तब उसकी माँ ने पीपल के पेड़ के पास जा कर देखा, यह तो उसका जमाई ही है। तब उसकी माँ ने जमाई से कहा: यहाँ क्यों बैठे हैं? मेरी बेटी तो अर्धब्यहि कर दी और अब क्या लोगे? साहूकारनी का बेटा बोला: मेरी माँ ने चौथ का तिलकुट बोला था लेकिन नहीं किया, इस लिए चौथ माता ने नाराज हो कर मुझे यहाँ बैठा दिया। जमाई की बात सुन कर लड़की की माँ साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा कि तुमने सकट चौथ का कुछ बोला है क्या? तब साहूकारनी बोली: तिलकुट बोला था। उसके बाद साहूकारनी बोली मेरा बेटा घर आजाये, तो ढाई मन का तिलकुट करुँगी। यह बात सुन कर गणेश भगवन प्रसंन हो गए और उसके बेटे को फेरों में लाकर बैठा दिया। बेटे का विवाह धूम-धाम से हो गया।

जब साहूकारनी के बेटा एवं बहू घर आगए तब साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया और बोली हे चौथ देव! आप के आशीर्वाद से मेरे बेटा-बहू घर आये हैं, जिससे मैं हमेशा तिलकुट करके व्रत करुँगी। इसके बाद सारे नगर वासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारम्भ कर दिया। फिर साहूकारनी ने कहा हे सकट चौथ! जिस तरह साहूकारनी को बेटे-बहू से मिलवाया, वैसे ही हम सब को मिलवाना।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा – 2 (Ganesh Chaturthi Vrat Katha in Hindi)

Sakat Chauth Vrat Katha

कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी पार्वती स्नान करने जा रही थी, तभी कक्ष में कोई न आए इसके लिए उन्होंने गणपति जी को आज्ञा दी की कोई न आये इस बात का ध्यान रखना है। तब भगवान गणेश ने अपनी मां पार्वती का आज्ञा का पूरी तरीके से पालन किया। तभी कुछ देर बाद वहां भगवान शंकर मां पार्वती से मिलने आये, मगर भगवान गणेश ने उन्हें रोक दिया। मां पार्वती से न मिलने पर भगवान शिव क्रोधित हो गए। इसके पश्चात उन्होंने अपने अस्त्र त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती जी भगवान गणेश जी की आवाज सुनकर कक्ष से बाहर आई। वह अपने पुत्र का सिर धड़ से अलग देखकर अधिक दुखी हो गईं और अपने पुत्र को जीवन दान देने का आदेश भगवान शिव को दिया, जिसके बाद भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर गणेश जी के धड़ से लगा दिया। इससे गणपति बप्पा को दूसरा जीवन मिल गया। तभी से सभी देवी देवताओं ने माँ पारवती और और उनके पुत्र गणेश को आशीर्वाद दिया। जो भी व्यक्ति अपनी संतान के लिए लम्बी आयु की कामना करेगा उसे सकट चतुर्थी का व्रत जरूर करना चाहिए। जो भी व्यक्ति पूरे विधि विधान से यह व्रत करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।

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