Hanuman Kavach Lyrics in Hindi: हिन्दू धर्म में हनुमान जी को सबसे शक्तिशाली देवता के रूप में पूजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार जो मनुष्य हनुमान जी की पूजा करता है उसके जीवन के बड़े से बड़े दु:ख दूर हो जाते हैं। हनुमान कवच का पाठ करने से मरते हुए प्राणी में जान आ जाती है।
इसके अलावा हनुमान कवच का पाठ करने से रोग, दु:ख, आदि से छुटकारा मिलता है। किसी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए भी हनुमान कवच का पाठ किया जाता है। आज हम आपको पंचमुखी हनुमान कवच के लिरिक्स, फायदे, और पाठ विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।
हनुमान कवच का महत्व (Hanuman Kavach Ka Mahatva)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हनुमान कवच को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के मुताबिक त्रेता युग में श्रीराम ने भी महाबली रावण को युद्ध में परास्त करने के लिए हनुमान कवच का पाठ किया था। क्या आपको पता है कि, भगवान श्रीराम ने ही हनुमान कवच की रचना की है। हनुमान कवच में भगवान श्रीराम की शक्ति विराजमान है।
हनुमान कवच के प्रभाव से बुराइयों पर जीत पाने के साथ साथ भूत, प्रेत, चांडाल, राक्षस व अन्य बुरी आत्माओं से भी बचा जा सकता है। नियमित रूप से हनुमान कवच का पाठ करने से टोने टोटके से भी बचाव होता है। जो मनुष्य नियमित रूप से हनुमान कवच का पाठ करता है उसके ऊपर काले जादू का असर नहीं होता है। रोज़ाना इस कवच का पाठ करने से जीवन के सभी शोक मिट जाते है।
पंचमुखी हनुमान कवच पाठ विधि (Panchmukhi Hanuman Kavach Path Vidhi)
- अगर आप हनुमानजी के पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र का जाप करना चाहते हैं तो सुबह उठकर नहाने के बाद हनुमान जी का ध्यान करें।
- अब अपने घर के पूजाघर या घर के किसी साफ़ सुथरे स्थान पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर पंचमुखी हनुमानजी की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें।
- अब पंचमुखी हनुमान जी को सिंदूर अर्पित करें।
- अब पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र का पाठ करें।
- अंत में अपने दोनों हाथ जोड़कर पाठ में हुई गलतियों के लिए हनुमान जी को प्रणाम करते हुए क्षमा मांगें।
श्री पंचमुखी हनुमान कवच लिरिक्स (Shri Panchmukhi Hanuman Kavach Lyrics)
श्रीगणेशाय नमः ।
ॐ श्री पञ्चवदनायाञ्जनेयाय नमः ।
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः ।
गायत्रीछन्दः । पञ्चमुखविराट् हनुमान्देवता । ह्रीं बीजं ।
श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । क्रूं कवचं । क्रैं अस्त्राय फट् ।
इति दिग्बन्धः ।
श्री गरुड उवाच ।
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणुसर्वाङ्गसुन्दरि ।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥ १॥
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् ।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥ २॥
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् ।
दन्ष्ट्राकरालवदनं भृकुटीकुटिलेक्षणम् ॥ ३॥
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् ।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥ ४॥
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् ॥
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम् ॥ ५॥
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥ ६॥
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥ ७॥
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् ।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥ ८॥
खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् ।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥ ९॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् ।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥ १०॥
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् ।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥ ११॥
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् ।
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम ।
पीताम्बरादिमुकुटैरूपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥ १२॥
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् ।
शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ॥ १३॥
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं
परिलिख्यति लिख्यति वामतले ।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं
यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता ॥ १४॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय
सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय
नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय
सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोत्तरमुखायादिवराहाय
सकलसम्पत्कराय स्वाहा ।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनायोर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय
सकलजनवशङ्कराय स्वाहा ।
ॐ अस्य श्री पञ्चमुखहनुमन्मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र
ऋषिः । अनुष्टुप्छन्दः । पञ्चमुखवीरहनुमान् देवता ।
हनुमानिति बीजम् । वायुपुत्र इति शक्तिः । अञ्जनीसुत इति कीलकम् ।
श्रीरामदूतहनुमत्प्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
इति ऋष्यादिकं विन्यसेत् ।
ॐ अञ्जनीसुताय अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ वायुपुत्राय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ अग्निगर्भाय अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ रामदूताय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ पञ्चमुखहनुमते करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
इति करन्यासः ।
ॐ अञ्जनीसुताय हृदयाय नमः ।
ॐ रुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा ।
ॐ वायुपुत्राय शिखायै वषट् ।
ॐ अग्निगर्भाय कवचाय हुम् ।
ॐ रामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ पञ्चमुखहनुमते अस्त्राय फट् ।
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।
इति दिग्बन्धः ।
अथ ध्यानम् ।
वन्दे वानरनारसिंहखगराट्क्रोडाश्ववक्त्रान्वितं
दिव्यालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचा ।
हस्ताब्जैरसिखेटपुस्तकसुधाकुम्भाङ्कुशाद्रिं हलं
खट्वाङ्गं फणिभूरुहं दशभुजं सर्वारिवीरापहम् ।
अथ मन्त्रः ।
ॐ श्रीरामदूतायाञ्जनेयाय वायुपुत्राय महाबलपराक्रमाय
सीतादुःखनिवारणाय लङ्कादहनकारणाय महाबलप्रचण्डाय
फाल्गुनसखाय कोलाहलसकलब्रह्माण्डविश्वरूपाय
सप्तसमुद्रनिर्लङ्घनाय पिङ्गलनयनायामितविक्रमाय
सूर्यबिम्बफलसेवनाय दुष्टनिवारणाय दृष्टिनिरालङ्कृताय
सञ्जीविनीसञ्जीविताङ्गदलक्ष्मणमहाकपिसैन्यप्राणदाय
दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुनसखाय सीतासहित-
रामवरप्रदाय षट्प्रयोगागमपञ्चमुखवीरहनुमन्मन्त्रजपे विनियोगः ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय बंबंबंबंबं वौषट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय फंफंफंफंफं फट् स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय खेंखेंखेंखेंखें मारणाय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय लुंलुंलुंलुंलुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा ।
ॐ हरिमर्कटमर्कटाय धंधंधंधंधं शत्रुस्तम्भनाय स्वाहा ।
ॐ टंटंटंटंटं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखवीरहनुमते
परयन्त्रपरतन्त्रोच्चाटनाय स्वाहा ।
ॐ कंखंगंघंङं चंछंजंझंञं टंठंडंढंणं
तंथंदंधंनं पंफंबंभंमं यंरंलंवं शंषंसंहं
ळंक्षं स्वाहा ।
इति दिग्बन्धः ।
ॐ पूर्वकपिमुखाय पञ्चमुखहनुमते टंटंटंटंटं
सकलशत्रुसंहरणाय स्वाहा ।
ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते करालवदनाय नरसिंहाय
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा ।
ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पञ्चमुखहनुमते मंमंमंमंमं
सकलविषहराय स्वाहा ।
ॐ उत्तरमुखायादिवराहाय लंलंलंलंलं नृसिंहाय नीलकण्ठमूर्तये
पञ्चमुखहनुमते स्वाहा ।
ॐ उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुंरुंरुंरुंरुं रुद्रमूर्तये
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय स्वाहा ।
ॐ अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय सीताशोकनिवारणाय
श्रीरामचन्द्रकृपापादुकाय महावीर्यप्रमथनाय ब्रह्माण्डनाथाय
कामदाय पञ्चमुखवीरहनुमते स्वाहा ।
भूतप्रेतपिशाचब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिन्यन्तरिक्षग्रह-
परयन्त्रपरतन्त्रोच्चटनाय स्वाहा ।
सकलप्रयोजननिर्वाहकाय पञ्चमुखवीरहनुमते
श्रीरामचन्द्रवरप्रसादाय जंजंजंजंजं स्वाहा ।
इदं कवचं पठित्वा तु महाकवचं पठेन्नरः ।
एकवारं जपेत्स्तोत्रं सर्वशत्रुनिवारणम् ॥ १५॥
द्विवारं तु पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्धनम् ।
त्रिवारं च पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं शुभम् ॥ १६॥
चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।
पञ्चवारं पठेन्नित्यं सर्वलोकवशङ्करम् ॥ १७॥
षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वदेववशङ्करम् ।
सप्तवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १८॥
अष्टवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।
नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ॥ १९॥
दशवारं पठेन्नित्यं त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् ।
रुद्रावृत्तिं पठेन्नित्यं सर्वसिद्धिर्भवेद्ध्रुवम् ॥ २०॥
निर्बलो रोगयुक्तश्च महाव्याध्यादिपीडितः ।
कवचस्मरणेनैव महाबलमवाप्नुयात् ॥ २१॥
॥ इति श्रीसुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं
श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचं सम्पूर्णम् ॥
हनुमान कवच पाठ के फायदे (Hanuman Kavach Ke Fayde)
- हनुमान कवच का पाठ करने से मनुष्य को साहस और शक्ति प्राप्त होती है।
- जो मनुष्य पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ हनुमान कवच का पाठ करता है उसे भय और चिंता से मुक्ति मिलती है।
- हनुमान कवच का पाठ करने से मन की शांति प्राप्त होती है। इसके अलावा इस कवच का पाठ करने से एकाग्रता बढ़ती है।
- इस कवच का पाठ करने से मनुष्य में आत्मविश्वास और सकारात्मकता आती है।
- हनुमान कवच का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
- हनुमान कवच का पाठ करने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
हनुमान जी के सर्व शक्तिशाली पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र का पाठ बहुत ही लाभकारी होता है। मान्यताओं के अनुसार जो मनुष्य पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ करता है उसके आसपास एक सुरक्षा कवच का निर्माण हो जाता है जिससे सभी प्रकर के संकटों से उसका बचाव होता है। आज हम इस लेख में आपके लिए श्री पंचमुखी हनुमान कवच पाठ की विधि और श्री पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र से लाभ लेकर आये हैं।
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