Vaibhav Laxmi Vrat: शास्त्रों में शुक्रवार का दिन माँ लक्ष्मी को समर्पित किया गया है। इस दिन वैभव लक्ष्मी का व्रत किया जाता है। वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन देवी लक्ष्मी के अष्टलक्ष्मी स्वरूप की पूजा और व्रत कथा का पाठ किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार माँ लक्ष्मी धन की देवी हैं, पर माँ लक्ष्मी के वैभव लक्ष्मी स्वरूप की पूजा का खास महत्व माना जाता है।
वैभव लक्ष्मी व्रत को स्त्री के साथ-साथ पुरुष भी रख सकते हैं। इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जो व्यक्ति पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ वैभव लक्ष्मी व्रत करता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि आने के साथ उसके सौभाग्य में वृद्धि होती है। आज हम आपको वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा, महत्त्व, पूजा विधि, और उद्यापन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।
वैभव लक्ष्मी व्रत कब शुरू करें (Vaibhav Laxmi Vrat Kab Shuru Kare)
शास्त्रों के अनुसार, किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के शुक्रवार से वैभव लक्ष्मी व्रत की शुरुआत की जा सकती है। आपको बता दें, कि वैभव लक्ष्मी की शुरुआत और उद्यापन मलमास या खरमास में नहीं किया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कम से कम 11 या 21 शुक्रवार तक वैभव लक्ष्मी का व्रत करना चाहिए।
वैभव लक्ष्मी व्रत का महत्व (Vaibhav Laxmi Vrat Ka Mahatva)
शास्त्रों में माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए वैभव लक्ष्मी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वैभव लक्ष्मी व्रत के दिन उनकी विशेष पूजा अर्चना करने से माॅं लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। वैभव लक्ष्मी व्रत को करने से माँ लक्ष्मी सभी प्रकार के आर्थिक संकट दूर कर देती हैं। शास्त्रों के मुताबिक माँ लक्ष्मी के कई रूप गए हैं। इस सभी रूपं में धन-दौलत प्राप्त करने के लिए वैभव लक्ष्मी का व्रत विशेष रूप से फायदेमंद बताया गया है।
वैभव लक्ष्मी व्रत कथा (Vaibhav Laxmi Vrat Katha in Hindi)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक शहर में सभी लोग अपने-अपने कामों में में इतना व्यस्त हो गए थे, कि पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार, जैसे संस्कारों में कमी आ गई थी। धार्मिक संस्कार कम होने की वजह से शहर में बुराइयां बढ़ने के साथ लोग शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह में लिप्त हो गए थे।
इतनी बुराइयां होने के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोगों में शीला और उसका पति भी उसी शहर में रहते थे। शीला एक बहुत ही धर्म कर्म से जुड़ी और संतोषी स्वभाव वाली महिला थी। उसका पति भी बहुत ही विवेकी और सुशील स्वाभाव का था। शीला और उसका पति भगवान की पूजा अर्चना में अपना समय ख़ुशी-ख़ुशी व्यतीत कर रहे थे। पर बुरी संगत के कारण शीला का पति बहुत जल्दी अमीर होने के सपने देखने लगा। जल्द अमीर होने के लालच में वह गलत रास्ते पर चल पड़ा और अपना सबकुछ गँवा दिया। इसके अलावा दोस्तों के साथ वह शराब भी पीने लगा।
शीला पति के बर्ताव से बहुत दुखी थी, इसलिए वह अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय भगवान की पूजा में व्यतीत करने लगी। एक दिन दोपहर के समय शीला के घर के दरवाजे़ पर किसी ने दस्तक दी। दरवाज़ा खोलने पर शीला ने देखा कि सामने एक बुज़ुर्ग महिला खड़ी थी। महिला के चेहरे पर अलौकिक तेज नज़र आ रहा था। महिला को देखते ही शीला के मन को बहुत शांति मिली। शीला उन्हें आदर के साथ अपने घर के अंदर ले आई। गरीबी की हालत के कारण उसके घर में ऐसा कुछ भी नहीं था जिस पर वह माँ जी को बिठा सके। ऐसे में शीला ने एक फटी हुई चद्दर बिछाकर माँ जी को बैठने को कहा।
माँ जी ने शीला से कहा, “क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? मैं भी हर शुक्रवार के दिन लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के लिए आती हूं।” शीला माँ जी की बात समझ नहीं पाई। मांजी ने फिर कहा, “आज कल तुम मंदिर नहीं आती हो। इसीलिए मैं तुमसे मिलने चली आई।”
माँ जी की बात सुनकर शीला ने दुखी होकर अपनी पूरी व्यथा बता दी। शीला की बात सुनकर माँ जी ने कहा तुम माँ लक्ष्मीजी की भक्त हो। माँ लक्ष्मी जी कभी भी अपने भक्तों को तकलीफ में नहीं देख सकती हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपा रखती हैं। माँ जी ने शीला को वैभव लक्ष्मी व्रत की पूरी विधि बताई और कहा, “पूरे विधि विधान के साथ इस व्रत को करने से सब कुछ ठीक हो जाएगा। यह व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जो व्यक्ति ये व्रत करता है उसे वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त होता है।”
शीला ने माँ जी के कहे अनुसार पूरे विधि-विशान के साथ वैभव लक्ष्मी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसके सभी दुःख दूर हो गए और उसका पति भी सही रास्ते पर आ गया।
वैभव लक्ष्मी पूजा विधि (Vaibhav Laxmi Puja Vidhi)
- वैभव लक्ष्मी का व्रत करने के लिए शुक्रवार को शुभ मुहूर्त में उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अब अपने घर पूजा घर को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लें।
- अब मां लक्ष्मी के सामने दीपक जलाकर व्रत करने का संकल्प लें।
- संध्याकाल में वैभव लक्ष्मी की पूजा के लिए उत्तर या पूर्व की दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएँ।
- अब अपने सामने के लकड़ी की चौकी पर लाल रंग के वस्त्र बिछाकर उस मां वैभव लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें।
- वैभव लक्ष्मी के साथ श्रीयंत्र की भी स्थापना करें।
- अब मां लक्ष्मी के सामने अक्षत रखकर उस पर कलश की स्थापना करें।
- अब कलश के ऊपर एक कटोरी में एक चांदी का सिक्का या गहना रखें।
- इसके बाद मां वैभव लक्ष्मी को सिंदूर, रोली, मौली, लाल फूल और फल अर्पित करें।
- मां वैभव लक्ष्मी को भोग के रूप खीर चढ़ाएं।
- अंत में वैभव लक्ष्मी व्रत कथा का पाठ करने के बाद आरती करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत के फायदे (Vaibhav Laxmi Vrat Ke Fayde)
- वैभव लक्ष्मी व्रत करने से व्यक्ति की सोच में सकारात्मकता आती है।
- अगर आप आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं तो वैभव लक्ष्मी व्रत करें। इस व्रत को करने से आपके जीवन से धन की कमी दूर हो जाएगी।
- वैभव लक्ष्मी व्रत करने से घर की सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- वैभव लक्ष्मी व्रत को करने से पारिवारिक कलेश दूर हो जाता है और परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम भाव बढ़ता है।
वैभव लक्ष्मी उद्यापन विधि (Vaibhav Laxmi Vrat Udyapan Vidhi)
- वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन करने के लिए अंतिम शुक्रवार के दिन वैभव लक्ष्मी की पूजा करने के पश्चात् 7 से 9 कन्याओं या सुहागिन महिलाओं को खीर और पूरी खिलाएं।
- भोजन करवाने के बाद सभी कन्याओं को वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक प्रदान करें।
- सभी कन्याओं को प्रसाद के रूप केला देकर विदा करें।
- अब स्वयं भी इस प्रसाद को ग्रहण करें।