भारतीय संस्कृति में धार्मिक और पौराणिक आधारों पर विभिन्न त्योहार बड़े ही उत्साह और भक्ति के साथ मनाए जाते हैं। इन त्योहारों में से एक त्योहार है “शनि जयंती”। यह त्योहार भगवान शनि के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है और हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व माना जाता है। तो चलिए आपको शनि जयंती व्रत और इस शनि जयंती के दिन पढ़ें जाने वाले मंत्रों के बारे में बताते हैं।
शनि जयंती क्यों मनाते हैं और इसका महत्व (Shani Jayanti Ka Mahatva)
शनि जयंती को वैशाख मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शनि की पूजा, अर्चना, और उनके बारे में चर्चा की जाती है। इस दिन कई तरह के भजन कीर्तन वाले कार्यकर्म आयोजित किये जाते हैं। कई लोग इस दिन भगवान शनि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए शनि जयंती शुभ मुहूर्त में ही मनाते हैं। शनि देव निरंतर आपके जीवन में संघर्ष और परिश्रम की परीक्षा लेते हैं, लेकिन उनकी कृपा से आप उन संघर्षों को अच्छी तरह से पार कर सकते हैं।
शनि जयंती का महत्व यही है कि इस दिन लोग भगवान शनि की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में संतुलन, समृद्धि, और सम्मान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। शनि जयंती को मनाने का एक अन्य कारण यह है कि शनि देव को एक ऐसे ग्रह के रूप में माना जाता है जो संघर्षों और कठिनाइयों का प्रतीक है।
इस दिन को मनाने से लोग अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं और शनि देव की कृपा से उन्हें समर्थ बनाते हैं। इस प्रकार, शनि जयंती को मनाने के पीछे कई धार्मिक, पौराणिक और आध्यात्मिक कारण होते हैं। इस दिन पूरे विधि विधान से शनि देव की पूजा अर्चना करना और व्रत कथा का पाठ करने से जीवन में कठिनाइयां कम हो जाती है। तो चलिए आपको इस दिन पढ़ें जाने वाली शनि व्रत कथा के बारे में बताते हैं।
शनि जयंती व्रत कथा (Shani Jayanti Vrat Katha in Hindi) – 1
शनि जयंती व्रत कथा के अनुसार, एक समय की बात है, एक गांव में एक नामी व्यापारी रहता था जिनका नाम धनाध्यक्ष था। वह धन के मामले में बहुत उन्नति कर चुके थे। धनाध्यक्ष का यह सिद्धांत था कि धन के माध्यम से ही सभी समस्याओं का समाधान हो सकता है। वे अपने लक्ष्य को पाने के लिए धन के प्रति अत्यधिक लालची थे। एक दिन, वे एक विश्वासपूर्ण बाबा के पास गए और उनसे अपनी सभी समस्याओं का हल चाहा। बाबा ने उन्हें शनिवार का व्रत करने का सुझाव दिया। उन्होंने धनाध्यक्ष को शनिवार का व्रत उठाने की सलाह दी और अच्छे नियत से करने का प्रयास करने को कहा। धनाध्यक्ष ने उस बाबा की सलाह को मान लिया और वह शनिवार का व्रत आरंभ किया। वह नियमित रूप से शनिदेव की पूजा और व्रत का पालन करने लगे।
कुछ समय बाद, धनाध्यक्ष के व्यापार में सुधार होने लगा। धन के साथ-साथ उनकी आत्मा में भी शांति और संतोष का अनुभव होने लगा। उनके परिवार और व्यापार में समृद्धि होने लगी। तबसे ऐसा माना जता है की शनिवार का व्रत करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में समृद्धि आती है। इसलिए, लोग शनिवार के व्रत को विशेष महत्व देते हैं और इसे धार्मिक उपासना का एक महत्वपूर्ण तरीका मानते हैं।
शनि जयंती व्रत कथा (Shani Jayanti Vrat Katha in Hindi) – 2
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है एक समय की बात है जब सूर्य देव की शादी राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुई थी। जिसके बाद कालांतर में इनसे तीन संतान- मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ। एक बार संज्ञा ने अपने पिता दक्ष से सूर्य के तेज के बारे में बात की, लेकिन राजा दक्ष ने उनकी बात को यह कहकर ठुकरा दिया कि अब तुम सूर्य देव की अंर्धांगिनी हो। इसके बाद संज्ञा ने अपने तपोबल से अपनी छाया को प्रकट किया, जिसका नाम संवर्णा रखा। तब कालांतर में छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। लेकिन जब सूर्य देव को पता लगा कि संवर्णा उनकी अर्धांगिनी नहीं है तो सूर्य देव ने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इंकार दिया। उस समय शनिदेव की दृष्टि सूर्य देव पर पड़ी, तो वह काले हो गए। इसके बाद सूर्य देव शिव जी के शरण में गए। जहां, शिव जी ने उन्हें संवर्णा से क्षमा मांगने को कहा। इसके बाद सूर्य देव ने छाया से क्षमा याचना की। तब से शनि जयंती के दिन यह कथा एक दूसरे को सुनाई जाती है।
शनि जयंती के दिन पढ़ें जाने वाले मंत्र (Shani Jayanti Mantra in Hindi)
- ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम। उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।
- ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः।
- ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
- ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।