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Lathmar Holi Celebration 2024: बरसाने की ये होली नहीं देखी तो कुछ नहीं देखा! बहुत ख़ास है लठमार होली

देशभर में होली का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा में हर साल अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। मथुरा में रंगों का यह त्योहार 40 दिनों तक चलता है और वसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है। इस वर्ष वसंत पंचमी 14 फरवरी को हुई। परंपरागत रूप से, वसंत पंचमी के दिन, बांके बिहारी मंदिर में सुबह की आरती होती है। इसके बाद मंदिर में भगवान बांका बिहारी को गुलाल का तिलक लगाकर होली उत्सव की शुरुआत की जाती है। ऐसे में एक ऐसी जगह भी है, जहाँ होली मनाने के दौरान खुशी के नाम पर महिलाएं पुरुषों को लाठियों से पीटती हैं और सभी लोग इस कार्यक्रम का भरपूर आनंद लेते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं लठमार होली की। आइये इस अतरंगी त्यौहार के महत्त्व, उत्सव के कारण और परम्पराओं के बारे में और विस्तार से जानते हैं।

लठमार होली का महत्त्व (Barsana Lathmar Holi Significance)

लठमार होली मथुरा, उत्तरप्रदेश का स्थानीय त्योहार है जो हिंदू पर्व होली के उत्सव का भाग है। उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास बरसाना और नंदगांव में वास्तविक होली उत्सव होने से कुछ दिन पहले, हर साल हजारों हिंदू और पर्यटक इस  उत्सव का भरपूर आनंद लेने के लिए इस स्थान पर एकत्रित होते है। इस साल 18 मार्च को बरसाने में लट्ठमार होली का भव्य उत्सव मनाया जाएगा।

यहाँ मनाई जाती है लठमार होली (Where is Lathmar Holi Celebrated)

जैसा कि नाम से पता चलता है, लट्ठमार का अर्थ है “लाठियों की होली”। यह होली अनुष्ठान शहर का मुख्य आकर्षण माना जाता है। यह उत्सव बरसाना के राधा रानी मंदिर में होता है, जिसके बारे में बताया जाता है कि यह देवी राधा को पूर्ण रूप से समर्पित एकमात्र मंदिर और श्री राधा का दरबार है। लठमार होली उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है, जिसमें प्रतिभागी। रंगों में डूबे रहते हैं, नृत्य करते हैं, संगीत में मग्न होकर  ठंडाई भी पीते हैं।

लठमार होली की पौराणिक कथा (Why is Lathmar Holi Celebrated)

मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने ग्वाल सखाओं के साथ राधाजी से मिलने बरसाने गए। वहां श्री कृष्ण और उनके मित्र गोपियों को चिढ़ाने लगे। जवाब में गोपियों ने लाठियां उठाई और उनके पीछे दौड़ पड़ीं। श्री कृष्ण और उनके सखाओं ने लाठियों से बचने के लिए ढाल का प्रयोग किया। तभी से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। तब से, नंदगाव के ग्वाल हर साल बरसाना आते हैं और भव्य उत्सव होता है। इस दौरान गायन, वादन और नृत्य भी होता है। यह लट्ठमार होली बहुत मनोरंजक और हँसी-मजाक और रंगों से भरपूर होती है।

ऐसे मनाया जाता है ये उत्सव (How is Barsana Lathmar Holi Celebrated)

परंपरा के अनुसार, इस दिन कृष्ण की भूमि नंदगांव के पुरुष आज भी बरसाना की महिलाओं के साथ होली खेलने आते हैं और श्री राधिकाजी मंदिर में झंडा फहराते हैं। लेकिन आजकल गोपियाँ वृन्दावन के पुरुषों का स्वागत रंग से नहीं बल्कि लाठियों से करती हैं।

लठमार होली के दौरान, महिलाएं लाठियां लेकर चलती हैं और उनका इस्तेमाल उन पुरुषों को मारने के लिए करती हैं जो उन्हें गुलाल से रंगने की कोशिश करते हैं। होली के त्योहार से कुछ दिन पहले होने वाले इस कार्यक्रम को देखने के लिए कई लोग इकट्ठा होते हैं। यहां महिलाएं लोकगीत गाते हुए और राधा-कृष्ण को याद करते हुए पुरुषों को लाठी से मारने की कोशिश करती हैं। इस दिन, पुरुष स्वेच्छा से और प्रसन्नता से लाठी का वार सहते हैं और यह पर्व पुरुषों पर महिलाओं की जीत के प्रतीक के रूप में काम करता है।

बरसाने की लठमार होली के दौरान, महिलाओं को रंगने का प्रयास करने वाले पुरुषों को उत्साही महिलाओं द्वारा पकड़ लिया जाता है और पुरुषों को महिलाओं के कपड़े पहनने और सार्वजनिक रूप से नृत्य करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह उत्सव बरसाना में विशाल राधा रानी मंदिर परिसर में होता है। कहा जाता है कि यह मंदिर देश में राधा जी को समर्पित एकमात्र मंदिर है। लठमार होली उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है। कई पुरुष प्रतिभागी नाचते हैं, गाते हैं, रंगों में डूब जाते हैं और ठंडाई नामक पेय का आनंद लेते हैं।

मथुरा, वृन्दावन और बरसाना की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां राधा-कृष्ण अपनी सखियों-गोपियों के साथ खेला करते थे। ब्रज धाम में सिर्फ फूलों या रंगों से ही नहीं बल्कि और भी कई तरीकों से होली खेली जाती है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही व्रज में पूरे मंदिर को पीले फूलों से सजाया जाता है। व्रज में 40 दिनों की होली का आनंद लेने के लिए, भक्त सामूहिक रूप से कान्हा की नगरी की यात्रा करते हैं और यहां होली मनाते हुए धन्य महसूस करते हैं।

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