भगवान विष्णु को समर्पित षटतिला एकादशी का व्रत सभी एकादशी के व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर किसी भी लोक में व्यक्ति बैकुंठ की प्राप्ति करना चाहता हैं तो उसे जरूर षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहिए। षटतिला एकादशी में भगवान विष्णु की कथा और तिल का अत्यंत महत्व बताया गया है। तो चलिए आपको षटतिला एकादशी व्रत कथा (Shat tila Ekadashi Vrat Katha 2024) की कहानी बताते हैं।
षटतिला एकादशी / शततिला एकादशी कब है? (Shat Tila Ekadashi 2024)
फरवरी माह में षटतिला एकादशी (Shat Tila Ekadashi 2024) 6 फरवरी (दिन मंगलवार) को पड़ेगी। इस दिन तिल का इस्तेमाल ज़रूर करना चाहिए और स्नान करते वक़्त पानी में तिल डालना चाहिए।
शततिला एकादशी व्रत कथा (Shat Tila Ekadashi Vrat Katha 2024)
एक समय की बात है, भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त परशुराम जी से अपने प्रिय व्रत का ज़िक्र किया और बताया उन्हें प्रशन्न करने के लिए ‘शततिला एकादशी’ का व्रत करना चाहिए। इस व्रत के पालन से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्त को सुख-शांति की प्राप्ति होती है। यह एक ऐसा व्रत हैं जिसे पूरी श्रद्धा भाव से करने से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है और बैकुंठ धाम में सभी प्रकार सुखों की प्राप्ति होती है।
ऐसा कहा जाता है, कई सदियों पहले, राजा मंदाता नामक एक धर्मात्मा राजा थे। जो भगवान विष्णु के भक्त थे। एक दिन, राजा के दरबार में एक ब्राह्मण तपस्या भंग के कारण आया और राजा से शरणागत वत्सल होकर भिक्षा मांगी, राजा मंदाता ने तुरंत ब्राह्मण को भिक्षा दी और उन्हें अपने दरबार में बुलाया। तब ब्राह्मण ने राजा से कहा “राजा मंदाता, तुम्हारा दिल भगवान विष्णु की आराधना में लगा हुआ है, इसलिए तुम्हें एक विशेष व्रत का पालन करना चाहिए जिससे तुम्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलेगा और बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।”
इस प्रकार, शततिला एकादशी व्रत कथा से हमें यह सीख मिलती है कि भगवान की भक्ति में निष्ठा रखने वाले व्यक्ति को भगवान का आशीर्वाद जरूर मिलता है और उसका जीवन सुख-शांति से भरा होता है। शततिला एकादशी व्रत को पालन करके हम अपने जीवन को धार्मिकता, भक्ति, और सद्गुण से भर सकते हैं और भगवान के करीब पहुंच सकते हैं।
शततिला एकादशी व्रत कथा (Shat Tila Ekadashi Vrat Katha – 2)
सभी एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण षटतिला एकादशी की व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत और पूजन करती थी। मगर वह कभी पूजा के बाद दान नहीं करती थी, न ही उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के अन्न या धन का दान किया था। मगर ब्राह्मणी के कठोर व्रत और पूजन से भगवान विष्णु प्रसन्न थे, लेकिन उन्होनें सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत और पूजन से शरीर शुद्ध कर लिया है । इसलिए इसे बैकुंठलोक तो मिल ही जाएगा। परंतु इसने कभी भी अन्न का दान नहीं किया है तो बैकुंठ लोक में इसके भोजन का क्या होगा? ऐसे में भगवान विष्णु भिखारी के वेश में आये और ब्राह्मणी से भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने भिक्षा में उन्हें एक मिट्टी का ढेला दे दिया और भगवान उसे लेकर बैकुंठ लोक वापस में लौट गए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी मृत्यु के बाद शरीर त्याग कर बैकुंठ लोक में आ गई। मिट्टी का दान करने के कारण बैकुंठ लोक में ब्राह्मणी को महल की प्राप्ति हुई, लेकिन उसके घर में अन्न का एक दाना भी नहीं था। यह सब देखकर वह भगवान विष्णु से बोली कि मैनें जीवन भर आपका व्रत और पूजन किया है लेकिन मेरे घर में कुछ भी नहीं है।
ब्राह्मण ने राजा को शततिला एकादशी के व्रत का वर्णन किया और उन्हें बताया कि इस व्रत का पालन करने से उन्हें अपनी इच्छाएं पूर्ण होंगी और उन्हें सुख-शांति की प्राप्ति होगी। राजा मंदाता ने ब्राह्मण की बात को सुनकर यह व्रत करने का निश्चय किया और अपने राजमहल में ही शततिला एकादशी का व्रत आरंभ किया। राजा ने इस व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की और व्रत के प्रति अपना पूरा मन और श्रद्धा से समर्पित किया।
शततिला एकादशी के दिन राजा ने भिक्षाटन करते हुए ब्राह्मण को बुलाया और उन्हें बड़ा धन और आशीर्वाद दिया। उसके बाद, राजा मंदाता ने समृद्धि और भलाइयों के साथ अपने राज्य को प्रबल बनाया और उसने भगवान विष्णु के प्रति अपनी भक्ति को और भी बढ़ाया।
तब ब्राह्मणी की समस्यां सुन कर भगवान विष्णु बोले कि तुम बैकुंठ लोक की देवियों से मिल कर षटतिला एकादशी व्रत करों और दान पुण्य करों और महात्माओं से इस व्रत की महत्वता के बारे में जानों और उसका पालन करो, तब तुम्हारी सारी भूल गलतियां माफ हो जाएँगी और तुम्हारी बैकुंठ लोक की सभी मनोकामना पूरी होगी।
तब ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन किया और देवियों से षटतिला एकादशी की व्रत कथा सुनी और इस बार व्रत करने के साथ तिल का दान किया। तभी से यह मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है।
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