शास्त्रों के अनुसार पौष माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के रूप में जाना जाता है। संतानप्राप्ति की इच्छा रखने वाले माता-पिता के लिए यह व्रत श्रेष्ठ एवं अद्भुत वरदान है। यह व्रत सब पापों को हरने और पितृऋण से मुक्ति दिलाने में सक्षम है। इससे पूर्व हम पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि आदि के बारे में जान चुके हैं। इस लेख में आप इस व्रत की कथा एवं महात्मय पढेंगे।
ऐसे करें पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत (Pausha Putrada Ekadashi Vrat)
इस दिन स्नान आदि करके व्रत रखकर भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक व्रत विधि का पालन करना चाहिए। पूजा करते समय ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का पाठ करके पूजन सामग्री अर्पित करनी चाहिए। पूजन के बीच में भी इस मंत्र का जप करते रहना चाहिए, व्रत की पूजा पूर्ण होने पर श्रद्धा-भाव से इस मंत्र के द्वारा प्रार्थना करनी चाहिए-
एकादश्यां निराहारः स्थित्वाहमपरेऽहनि ! भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष पुत्रं में भवाच्युत।
अर्थ – हे ‘कमलनयन’ भगवान अच्युत ! मै एकादशी को निराहार रहुंगा और अगले दिन भोजन करूंगा, आप मुझे उत्तम पुत्र दें।
इस दिन भक्त को दिनभर सदाचार का पालन करते हुए पवित्र रहते हुए झूठ बोलने, ईर्ष्या करने और दूसरों को दुःख देने या हानि पहुचाने या क्लेश से बचना चाहिए। ऐसे विधिवत व्रत करके एकादशी के महात्म्य की कथा को भी सुनना और पढ़ना चाहिए।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महात्मय (Pausha Putrada Ekadashi Importance)
धर्मराज युधिष्ठिर बोले, “हे प्रभु! आपने मुझे पौष कृष्ण एकादशी अर्थात सफला एकादशी की महिमा बताकर बड़ी कृपा की है। अब कृपा करके प्रभु मुझे पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में भी बताएं। इस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है तथा इसके व्रत को करने का क्या विधान है? इसका व्रत करने से कौन से फल की प्राप्ति होती है और इस व्रत में कौन-से देवता का पूजन किया जाता है? कृपया यह सब विधानपूर्वक मुझे बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे, “धर्मराज। पौष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली यह एकादशी, पौष पुत्रदा एकादशी कहलाती है। इसमें भी भगवान श्री नारायण की ही पूजा की जाती है। भक्त को इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। इस संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के जैसा कोई दूसरा कोई व्रत नहीं है। इस व्रत से मिलने वाले पुण्य से मानव तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। मैं तुम्हे इसकी एक कथा सुनाता हूँ। तुम इसे ध्यानपूर्वक सुनो।”
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha 2024)
हमारे शास्त्रों में इस व्रत की महिमा की अनेकों कथाएं हैं किन्तु पद्मपुराण में भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा पौष माह में आने वाली पुत्रदा एकादशी के बारे में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान शासन किया करते थे और उनकी रानी का नाम चम्पा था। राजा सुकेतुमान के विवाह का बहुत समय बीत के बाद भी उन्हें कोई संतान सुख प्राप्त नही हुआ, जिसके कारण वे पति-पत्नी हमेशा इस बात से चिंता और शोक में डूबे रहने लगे। उनके पितृ भी इस बात से चिंतित रहते थे कि राजा सुकेतुमान के बाद अब कोई ऐसा नहीं दिखाई देता जो इस कुल के पितरों का तर्पण करा सके, यह सोचकर सभी पितृगण भी दुखी होने लगे।
एक दिन राजा सुकेतुमान बिना पुरोहित, मंत्री आदि को सूचना दिए बिना घने वन में चले गये और वहाँ जंगली जानवरों को देखते और घुमते हुए बहुत समय बीत जाने पर राजा को भूख प्यास लगी। वहां निकट ही एक सरोवर था जिसके चारों तरफ ऋषि-मुनियों के आश्रम बने हुए थे, वे सभी ऋषिगण वेदपाठ कर रहे थे और उसी समय राजा सुकेतुमान के दायें अंग फड़कने लगे, राजा इसे शुभ समझकर घोड़े से उतरकर गये और मुनियों को दंडवत प्रणाम किया और उनकी वन्दना करते हुए बोले हे ! महामुनि जी, आप लोग कौन हैं ? आपके नाम किस प्रकार हैं और आप लोग यहाँ एकत्रित क्यों हुए हैं ? मुनिजन कहने लगे कि हे राजन ! हम लोग विश्वदेव हैं और यहाँ स्नान करने के लिए आये हैं। आज से पांच दिन बाद माघ माह का स्नान आरम्भ होगा। आज के दिन संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, जो व्रत करने वाले जन को उत्तम पुत्र देती है। अब तुम्हारी क्या इच्छा है? वो हम से कहो। इतना सुनकर राजा बोले, हे विश्वेदेवगण ! संतान तो मेरे भी कोई नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मुझे पुत्र प्राप्ति का उपाय बताएं।
मुनिगण बोले- हे राजन ! आज पुत्रदा एकादशी है। आप इसका व्रत करें क्योंकि इसका व्रतफल अमूल्य है। अतः यह व्रत करने से अवश्य ही आपके घर में पुत्र का जन्म होगा। मुनिजन के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन पुत्रदा एकादशी का विधि अनुसार व्रत किया और अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करके मुनियों का आशीर्वाद प्राप्त करके वापस अपने राज्य अपने घर आ गये। कुछ समय के बाद रानी चम्पा ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल आने पर उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ तथा वह राजकुमार अत्यंत वीर, बलवान, यशस्वी और प्रजापालक हुआ। श्रीकृष्ण ने कहा की हे धर्मराज, जो मनुष्य इस एकादशी क माहात्म्य को पढ़ता, सुनता है और सुनाता है, उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति भी होती है।
इस प्रकार पौष पुत्रदा एकादशी की कथा पूर्ण होती है।
संसार के स्वामी भगवान विष्णु पौष पुत्रदा एकादशी के देवता हैं और एकादशी की तिथि ही उनको समर्पित है, इसलिए जप, तपस्या, दान और सत्कर्म आदि अनुष्ठान-पूजा के लिए यह तिथि सर्वोच्च है। संसार में इससे बढ़कर दूसरी अन्य कोई तिथि नहीं है। इस तिथि पर जो व्यक्ति सच्चे मन से भगवान विष्णु को अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है, और उनसे प्रार्थना करता है, वह पुत्ररत्न की प्राप्ति भगवान के आशीर्वाद के रूप में करता है।
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