Na raja bina sevak na sevak bina raja: यह पंचतंत्र के पहले तंत्र कि दुसरी कहानी है, जो “धोखेबाज़ मित्र” कहानी के बाद आती है।
आईए इस रोचक कहानी को जानें और देखें इससे क्या शिक्षा मिलती है।
न राजा बिना सेवक, न सेवक बिना राजा (Na Raja Bina Sevak Na Sevak Bina Raja)
करतक ने अपने भाई दमनक को एक बंदर कि कहानी सुनाई।
एक नगर के पास एक व्यापारी का नया मकान बन रहा था। इस मकान में लकड़ी का काम करने वाले कारीगरों ने दो बड़े तख्ते बनाकर रखे थे। उन तख्तों के बीच लकड़ी को काटा जाता था।
एक दिन बंदरों का एक काफ़िला वहाँ से गुजर रहा था। उनमें से एक बंदर, जो बहुत ही शरारती था, दो तख्तों के बीच खड़ा हो गया और वहाँ झूलने लगा। उसे झूलने में बहुत आनंद आ रहा था। फिर उसने पूरी ताकत लगाकर एक छलांग लगाई।
बस! दोनों तख्त उपर उठे और बंदर उनके बीच बुरी तरह फंस गया, जिससे निकलने का उसके पास कोई साधन नहीं था। उसके साथी बंदरों ने सिर्फ़ उसकी आखरी चीख सुनी।
इस तरह, वह शरारती बंदर अपनी मूर्खता के कारण मर गया। जो बेवजह दूसरों के काम में हस्तक्षेप करता है, उसका ऐसा ही हाल होता है।
“इसलिए, हमें उस सिंह को भूल जाना चाहिए और अपनी चिंता करनी चाहिए। हम इस झंझट में क्यों पड़ें?” करतक ने दमनक को कहा।
दमनक और करतक के बीच में तर्क
दमनक ने दृढ़ता से जवाब दिया – “बुद्धिमान व्यक्ति दोस्तों की मदद करने और शत्रुओं को हानि पहुँचाने के लिए राजा की सहायता लेता है। भोजन कौन नहीं करता? जिनके जीने से अन्य लोग भी जीवित रह सकें, उन्हें जीवित रहना चाहिए। अन्यथा, क्या पक्षी अपने चोंच से पेट नहीं भरते?
जो व्यक्ति न किसी अपने पर, न पराए पर, न बंधुओं पर और न दुखियों पर दया करता है, उसका जीवन व्यर्थ है।
माता की कोख से जन्मे उस पुत्र के जन्म का क्या महत्त्व है, जो झंडे के समान वंश में शीर्ष नहीं हो पाता। तट पर बढ़ने वाली उस घास के भी जीवन का महत्त्व होता है, जिसे पकड़कर डूबते प्राणी किनारे पहुँचे।
मनुष्य कि ताकत लकड़ी के अंदर छिपी आग की तरह है। अगर वह अपनी ताकत को नहीं दिखाता, तो लोग उसे अपमानित कर सकते हैं। जब तक आग लकड़ी कि अंदर छुपी है, सब लोग उसे लांघ जाते हैं। परन्तु जब वह आग बाहर निकलती है, तो कोई उसके पास नहीं जाता, सब डरते हैं।”
करतक ने ध्यान से सारी बातें सुनकर जवाब दिया – “यह बात सच है, लेकिन हम अब मंत्री नहीं हैं। हम सिंह के नगर में अप्रधान हैं, तो हमें इस बात से क्या करना?
बुजुर्गों ने हमेशा कहा है कि वह मूर्ख अप्रधान व्यक्ति जो राजा को बिना बुलाए सलाह देते हैं, उनकी न केवल अवहेलना होती है, साथ ही वह अपमानित भी होते हैं। इसलिए हमें अपनी बात वहाँ कहनी चाहिए जहाँ इसका कुछ अच्छा परिणाम हो सके। ऐसे स्थान पर बात कहने से ऐसा प्रभाव होगा जैसा सफेद कपड़ों पर रंग का प्रभाव होता है।”
दमनक बोला – “नहीं, यह पूर्ण सत्य नहीं है। राजा की सेवा करने वाले अपने आप प्रधान हो जाते हैं। जो ऐसा नहीं करते, वह अप्रधान रह जाते हैं। वह सेवक जो राजा का क्रोध बरदाश्त कर सकते हैं, वह रूठे हुए राजा को मना भी सकते हैं।
विद्वानों, बुद्धिजीवियों और बहादुरों का राजा सम्मान करते हैं। जो व्यक्ति अपनी जाति आदि के गर्व में डूबकर राजा के पास नहीं जाते, वे सफलता और ख़ुशी के बजाय निराशा ही पाते हैं। बुद्धिमान लोग राजा के समर्थन से ही समाज में अच्छा स्थान और सम्मान प्राप्त करते हैं। ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति के लिए राजा को वश में करना बहुत कठिन नहीं है।”
करतक ने पूछा – “ठीक है, तुम अब क्या करना चाहते हो?”
दमनक – “मैं यह कहना चाहता हूँ कि अभी हमारे राजा और उनका परिवार भयभीत हैं। हमें उनके समक्ष जाकर उनके भयभीत होने का कारण जानना चाहिए। उसके बाद संधि करना, आपत्ति जताना, लड़ाई करना, हमला करना, चुप रहकर मौका ढूँढना, या किसी ताकतवर कि मदद लेना – यह सभी राजनीतिक चालें हैं मेरे भाई। फिर हम इनमें कोई भी खेल सकते है।”
करतक – “तुमहें कैसे पता कि राजा भयभीत हैं?”
“मेरे भाई, कही हुई बात को तो पशु भी भांप लेते हैं। लेकिन जो बुद्धिमान हैं, वह तो सिर्फ चहरे से भी बातों का पता लगा सकते हैं। जैसे कि मनु जी ने कहा है – क्रियाएँ, बातचीत, नजरें, इत्यादि मन का स्थिति दिखाती हैं।
मैं आज डरे हुए राजा के पास जाऊंगा और अपनी बुद्धिमत्ता के साथ उनका डर दूर कर दूंगा और उनका मंत्री बन जाऊंगा”, दमनक ने उत्तर दिया।
“पर तुमको तो अभी राज-दरबार में जाने के बारे नहीं पता, फिर तुम यह कैसे करोगे?” – करतक ने पूछा।
दमनक ने उससे वर्णन किया कि उसने जान लिया है राजा की सेवा में एक अच्छे और वफादार सेवक कैसे बनते है।
“बापूजी के गोदी में खेलते समय, मैंने घर आने वाले साधू, संन्यासी और विद्वानों की बातें सुनी थी। उन सभी बातों को मैंने अपने मस्तिष्क में बैठा लिया था।
उनका कहना है – इस सुंदर पृथ्वी को ‘शूर’, ‘ज्ञानी’ और ‘सेवाभाव’ वाले मनुष्य ही आवश्यक हैं। सेवा उसकी है, जो स्वामी के भले का ध्यान रखता है। विद्वानों को चाहिए कि वह सेवा द्वारा ही राजा को खुश करें।
पंडितों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि खुदके गुणों को न जानने वाले व्यक्ति कि सेवा न करें। क्योंकि बंजर धरती पर हल जोतने और फ़सल बोने का कोई लाभ नहीं। उसी प्रकार, विद्या और गुणों की बात मंद बुद्धिवालों से करना व्यर्थ है।
गरीब और छोटे वर्ग के गुणवान लोगों की सेवा करें। क्योंकि जीवन में कभी-न-कभी ऐसा समय आता है जब ऐसे लोगों की मदद आवश्यक हो जाती है।
इंसान चाहे भूखा-प्यासा बैठा रहे, किसी भी विचारहीन धनी व्यक्ति से सहायता नहीं मांगनी चाहिए। जो भूखे नौकर का पेट न भर सके, उस राजा को त्याग देना चाहिए।
राजा कि माता, पुत्र, मुख्यमंत्री तथा राजपाल से भी राजा के समान व्यवहार करें।
अपने कर्तव्यों का पालन करने वाला सेवक सदा राजा को प्रिय होता है।
अपने मालिक के द्वारा प्रदान किए गए धन से जो दास संतुष्ट होता है और आभार व्यक्त करता है, वह नौकर सदा अपने मालिक के दृष्टिकोण में उत्कृष्ट और नेक होता है।
जो वीर युद्ध समय में अग्रगामी है, नगर में अनुगामी है और राजमहल के द्वार पर विचरण करता है, वही राजा को अत्याधिक प्रिय होता है।
जो सेवक जुए को दोष, मदिरा को हानिकारक और पराई स्त्री को बेकार समझता है, वह राजा का प्रिय होता है।
वह व्यक्ति समझदार होता है जो यह जानते हुए भी कि वह राजा को प्रिय है और राजा उसकी सलाह मानते हैं, विधियों और नियमों का उल्लंघन नहीं करता।
जो व्यक्ति मालिक की ग़लत बातों का बुरा नहीं मानता और निडरता से युद्ध करता है तथा परदेस को भी अपना देश मानता है, वह राजा को हमेशा प्रिय होता है।”
करतक ने कहा- “वाह वाह भाई, बहुत अच्छे। यह सब ठीक है। अब यह बताएं की जब वहाँ जायेंगे तो पहले क्या पूछेंगे?”, करटक ने हंसते हुए सवाल किया।
“यह सब बातें बातों में परिस्थितियाँ देखकर आती हैं, जैसे अच्छी वर्षा होने पर बीज से पौधे पैदा होतें है।
किसी के दिल में बुराई होती है पर उनकी ज़ुबान मिठी होती है, जबकि किसी का दिल बड़ा साफ़ होता है पर ज़ुबान तीखी। कोई-कोई ऐसा भी होता है जिसकी बात भी अच्छी होते है और दिल भी साफ होता है। इसलिए मैं ऐसी कोई बात नहीं करूंगा जिससे कोई बुरा प्रभाव पड़े।” – दमनक ने कहा।
करतक थोड़ी देर सोचने के बाद बोला, “भाई, राजा लोग काबू में बड़ी मुश्किल से आते हैं, क्योंकि वह हमेशा चापलूसी और खुशामदी करने वाले बड़े-बड़े लोगों से घिरे होते हैं। वह लोग राजा को नीचे वाले लोगों से मिलने नहीं देते और राजा तक पहुँचना और भी कठिन हो जाता है। यदि कोई भूल से भी राजा की इच्छा के खिलाफ कुछ कर दे तो साँप की तरह डसकर उसे नष्ट करने में उन्हें देर नहीं लगती।”
“हाँ भैया, मैं यह समझता हूँ। लेकिन साथ ही मैं यह भी जानता हूँ कि इंसान अपनी बुद्धि के बल पर इन सबको पार कर सकता है। वह अपना मार्ग स्वयं बना सकता है। बुद्धिमान व्यक्ति जब राजा तक पहुँचते हैं, तब यह खुशामदी और दुष्ट लोग राजा की नज़रों से गिर जाते हैं। जैसी करनी वैसी भरनी। बुद्धिमान व्यक्ति अपनी जगह ख़ुद बनाते हैं। सेवक का उचित आचरण यह है कि वे अपने मालिक की सभी आज्ञाओं का पालन करें, मीठी वाणी से तो पत्थर भी पिघल जाते हैं। राजा के गुस्सा होने पर, प्रेम से उसका मन जीतें। उनकी पसंदीदा वस्तुओं से भी प्रेम करें। इस प्रकार बुद्धिमान लोग बिना तंत्र-मंत्र के भी लोगों का मन जीत सकते हैं।”
करतक ने हार मानकर कहा, “तो फिर ठीक है भाई, जो तुमने सोचा है वह करो। राजा के पास जाकर सदा सावधान रहना। मेरा भविष्य भी तुम्हारे साथ जुड़ा है। तुम्हारा मार्ग मंगलमय हो।”
फिर दमनक करतक से विदा लेके राजा से मिलने चल पड़ा।
राजा के पास पहुँचा दमनक
राजा ने दमनक को आते देख पहचान लिया और अपने मंत्री से दमनक को आदरपूर्वक अपने समक्ष लाने को कहा।
दमनका राजा के सामने आये और सिर झुकाकर राजा को नमस्कार किया। राजा पिंगलक अपने पूर्व मंत्री के पुत्र बहुत खुश हुए और उसे अपने पास बिठाया। राजा ने उससे कहा, “हमने बहुत समय से तुम्हें नहीं देखा।”
दमनक ने प्यार से कहा, “महाराज, आप हमें शायद भूल गए हें, लेकिन हम आपको कैसे भूल सकते हैं, क्योंकि हम आपके वफादार हैं और पुराने साथी भी। आज, जब हमने आपको दुःख में देखा, तो हम आपके पास चले आए। इस तरह की परेशानियों के समय में ही व्यक्ति को अपने तथा पराए का पता चलता है। और अपना कर्तव्य निभाना हमारा फ़र्ज़ है।
महाराज, आप तो जानते हैं, अगर कोई राजा अपने सेवकों के गुणों को मूल्य नहीं देता, तो सेवक उसका साथ नहीं देते। जब कोई राजा अपने किसी बुद्धिमान सेवक को नीचे गिराता है, तब उस सेवक के मन में नफ़रत पैदा हो जाती है। इसमें वह सेवक दोषी नहीं होता। जैसे यदि सोने के आभूषणों में जड़ा जाने वाला हीरा, पीतल में जड़ा जाए, तो न वह झंकृत होता है, न शोभा बढ़ाता है। उसे देखने वाले लोग, जड़ने वाले से नफ़रत करते हैं।
आपने मुझसे पूछा कि मैने बहुत दिनों बाद क्यों आया, तो उत्तर यह है कि जहाँ पर दांयें-बायें में कोई फर्क न हो, वहाँ पर बुद्धिमान कैसे रुके? जिस देश में जौहरी नहीं होते, वहाँ पर सागर से निकलने वाले मोतियों की कीमत नहीं लगाई जा सकती।
वह लोग जिनकी बुद्धि कांच को मणि और मणि को कांच समझती है, उनके पास नौकर ज़रा भी नहीं रुकते। वह स्थान जहाँ लाल मणि और वैद्य मणि में कोई भिन्नता नहीं मानी जाती, वहाँ रत्नों का व्यापार कैसे किया जा सकती है?
जहाँ मालिक सब नौकरों के साथ उनकी योग्यता या अयोग्यता समझे बिना सबसे समान तरीके से व्यवहार करता है, वहाँ प्रतिभाषाली सेवकों का दिल टूट जाता है। न राजा बिना सेवक, न सेवक बिना राजा रह सकते हैं। यह दोनों आपस में गहरे रूप से जुड़े होते हैं।
जो राजा प्रजा के दिलों को नहीं जीत सकता, जनहित के काम नहीं करता, वह बिना किरणों के सूर्य के समान है।
राजा अपने वफादार और बहादुर सेवकों को खुश होकर इनाम देता है और वहीं सेवक समय पर अपनी जान भी दे सकते हैं राजा के लिए।
जो सेवक भूख, सर्दी, गर्मी, इत्यादि से नहीं डरता, वही वफादार रह सकता है।”
दमनक की ज्ञानवाणी सुनकर पिंगलक ने कहा, “अच्छा, ऐसा ही हो! तुम छोटे-बड़े, समर्थ-असमर्थ की बात छोड़ो। तुम हमारे मंत्री के पुत्र हो। जो कुछ भी कहना चाहते हो, निडर होकर कहो।”
दमनक ने कहा, “मैं तो सिर्फ विनती करना चाहता हूँ, महाराज!”
पिंगलक ने हँसकर कहा, “तो फिर संकोच कैसा? जो कहना चाहते हो कहो।”
दमनक ने जवाब दिया – “देखो मित्र, राजा के कार्यों को सभी लोगों के सामने कहना उचित नहीं, क्योंकि गुप्त बातें छः कानों में जाने से मुसीबत का कारण हो सकती हैं।”
पिंगलक ने दमनक की बातों को ध्यान से सुना और फिर आंख के इशारे से वहाँ बैठे सभी जानवरों को वहाँ से जाने का संकेत दिया।
बिना किसी बहाने के दमनक ने शेर से पूछा, “हे जंगल के राजा, आप जब नदी किनारे पानी पीने गए थे, तो फिर वापस क्यों लौट आए?”
पिंगलक ने हँसकर कहा, “यूँ ही।”
दमनक ने अर्थपूर्ण वचनों में कहा – “देखिए महाराज, यदि यह कहने योग्य नहीं है तो ठीक है। किन्तु इस बात को छुपाएँ मत। इस विषय में कहा जाता है – औरत से, मित्रों से, तथा युवा मित्रों से गुप्त विचार कुछ छुपा लेना उचित हो सकता है, परन्तु यह उचित है या नहीं, ऐसा सोचकर बुद्धिमान को समय आने पर बड़ों के अनुरोध करने पर गुप्त से गुप्त बात भी बता देनी चाहिए।”
दमनक की बात सुनकर शेर सोच में पड़ गया, क्योंकि उसकी बात में वज़न था। फिर वह सच्चा मित्र लग रहा था।
मित्रों के बारे में कहा गया है कि सच्चा मित्र, वफादार नौकर, बुद्धिमान स्त्री तथा दयालु मालिक के आगे अपना दुख बयाँ करने से व्यक्ति अपने मन का बोझ हल्का कर सकता है। इसलिए पिंगलक ने अपने मन की बात होंठों पर ले आया। उसने कहा, “मैं इस जंगल को छोड़ कर जाना चाहता हूँ।”
दमनक ने प्रश्न किया – “इस वन के राजा होकर भी आप ऐसा विचार क्यों कर रहे हैं?”
पिंगलक ने कहा – “मेरे मित्र, मैं तुमसे क्या छुपाऊँ। इस जंगल में अद्भुत जानवर आ गया है। उसकी गर्जना ही इतनी भयानक है कि भय के कारण कलेजा हिल जाता है। फिर उसकी शक्ति कितनी होगी।”
फिर दमनक ने हँसकर शेर की ओर देखा और बड़े अन्दाज़ से कहने लगा,
“महाराज, आप केवल उसकी गर्जना से ही भयभीत हो गए, यह तो उचित नहीं। पानी बांध को तोड़ देता है, चौकस न रहने पर गुप्त ख्याल उतपन्न हो सकता है, चुगली करने से प्यार टूट जाता है और दुःखी जन कठोर वचन से अलग हो जाते हैं। आपके पूर्वजों द्वारा उपार्जित इस जंगल को छोड़ना आपके लिए ठीक नहीं होगा।
यह बात ध्यान रखने योग्य है कि अत्यंत उग्र और भयावह शत्रु से मुठभेड़ होने पर भी जो धीरज रखता है, उस राजा को कभी भी हार का मुंह नहीं देखना पड़ता। गर्मी के दिनों में तालाब तो सूख जाते हैं, किंतु सागर नहीं सूखता।
जो मुसीबतों से डरता नहीं, सुख में खुश नहीं होता, युद्ध में भयभीत नहीं होता, ऐसा वीर पुत्र तो किसी-किसी माँ को ही मिलता है।
बल हीन होने से नम्र, निस्सारता होने से लघु, तथा मान-रहित व्यक्ति का जन्म लेना जैसे तिनके के समान है। जैसे खूबसूरत होते हुए भी लाख का आभूषण बेकार होता है। यह सब जानकर आपको धैर्य रखना चाहिए। ऐसे भयभीत होकर भागने से तो आप बदनाम हो जाएंगे। यह तो गोमायु गीदड़ की तरह डरने की बात हुई, जिसे बाद में पता चला कि ढोल में तो पोल ही पोल है।”
“क्या हुआ था गोमायु गीदड़ के साथ, सुनाओ!” राजा बोले।
फिर दमनक गोमायु गीदड़ की कहानी सुनाने लगा।
अगले भाग में हम पढ़ेंगे गोमायु गीदड़ की “बुजदिल मत बनो” कहानी।