Dhokebaaz Mitra Panchtantra Story in Hindi: धोखेबाज मित्र पंचतंत्र के पहले तंत्र ‘मित्र भेद’ की पहली कहानी है। यह कहानी पंचतंत्र की भूमिका स्थापित करती है। पंचतंत्र की पहली कहानी जानने से पहले आइए देखते हैं कि पंचतंत्र की रचना कैसे हुई और इसके पांच तंत्र क्या हैं।
पंचतंत्र की कहानियाँ (Panchtantra ki Kahaniyan)
पंचतंत्र की कहानियाँ मनोरंजक तो होती ही हैं, वहीं हर कहानी में व्यावहारिक ज्ञान तथा कोई ना कोई मूल ज़रूर छिपा होता है। इस ग्रंथ की प्रत्येक कहानी हमें कुछ न कुछ सिखाती है और वह भी बहुत ही रोचक तरीके से। पंचतंत्र की कहानियों में बच्चों के साथ-साथ बड़े भी रुचि रखते हैं।
आचार्य विष्णु शर्मा द्वारा रचित यह प्राचीन ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध है और इसका अनुवाद दुनिया के कई भाषाओं में किया गया है।
विष्णु शर्मा लगभग 2000 साल पहले दक्षिण भारत के महिलारोप्य नगर में निवास करते थे।
उस समय के राजा अमरशक्ति के तीन मूर्ख पुत्र थे। राजा के पुत्रों को राजनीति और नेतृत्व के गुण सीखाने की जिम्मेदारी विष्णु शर्मा जी कि थी। वह उन्को जंतु कथाओं द्वारा शिक्षा दिया करते थे। इसी कहानियों के समूह को पांच तंत्रो में भाग करके पंचतंत्र की रचना हुई।
पंचतंत्र के पांच तंत्र (Panchtantra ke Panch Tantra)
1. मित्रभेद: इस भाग में मित्रों के बीच मनमुटाव की कहानियाँ हैं।
2. मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति: इस भाग में मित्रता की प्राप्ति या उसके लाभ को दर्शाने वाली कहानियाँ हैं।
3. संधि-विग्रह / काकोलूकियम: इस भाग में कौए और उल्लू की कथाएँ शामिल हैं।
4. लब्ध प्रणाश: इस खंड में लाभ के नष्ट हो जाने कि कहानियाँ हैं।
5. अपरीक्षित कारक: इस भाग में यह बताया है कि किसी चीज़ को पूर्ण रूप से जानने के पश्चात ही उसपर कोई कदम उठाना चाहिए।
पंचतंत्र की कहानी धोखेबाज मित्र (Dhokebaaz Mitra Panchatantra Story in Hindi)
एक समय की बात है, महिलारोप्य नामक एक नगर में वर्धमान नाम का एक व्यापारी रहता था। वर्धमान के पिता उसके लिए बहुत सा धन और अच्छा व्यापार छोड़ गए थे। फिर भी उसकी यही इच्छा थी कि वह किसी भी तरह एक अमीर आदमी बनें, इतना अमीर कि हर किसी की जुबान पर उसका ही नाम हो। बस यही विचार उसके दिमाग में घूमता रहता था।
अमीर बनने के लिए उसके पास छह रास्ते थे – सरकारी नौकरी, खेती, ब्याज़, व्यापार, शिक्षा और भिक्षा। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसको इनमें से किसी एक को चुनना था।
वह यही सोचता रहता की इन छह रास्तों में से कौन सा रास्ता चुना जाए।
सरकारी दफ्तरों में अधिकारियों को दिन-रात प्रणाम करना पड़ता है। फिर उनकी डांट-फटकार भी सुननी पड़ेगी। उसके बाद भी क्या भरोसा था कि वह कब तक अमीर बन पाएगा।
खेती एवं शिक्षा उसके लिए असंभव थे।
ब्याज पर पैसा उधार दे सूदखोरी से पैसा कमाने वाले व्यक्ति अक्सर घर पर पड़े-पड़े आलसी हो जाते हैं। उसमें धन हानि का भी भय रहता है।
तो फिर एक ही रास्ता बचा था, व्यापार।
फिर क्या, थोड़े ही समय में सारी तैयारियां पूरी कर ली गईं। एक मजबूत बैलगाड़ी खरीदी गई और उसे खींचने के लिए दो शक्तिशाली बैल – संजीवक और नन्दक, खरीदे गये। इस प्रकार वर्धमान व्यापार करने मथुरा की ओर निकल पड़ा।
रास्ते में एक घने जंगल में पहुँचकर संजीवक नामक बैल बेहोश होकर गिर गया। उसका एक पैर भी टूट गया। यह देख वर्धमान बहुत चिंतित हो गया। घने जंगल में जंगली जानवरों और चोरों का भय उसे सता रहा था। कुछ समय इंतज़ार करने के बाद उसने संजीवक के साथ रक्षक छोड़ दिए और आगे बढ़ गया।
रक्षकों ने जब देखा कि वहाँ शेर, चीते, इत्यादि हिंसक जानवरों का खतरा है तो वह एक-दो दिन में ही वहाँ से भाग निकले। जब वह वर्धमान के पास पहुंचे तो उन्होंने झूठ बोल दिया और कहा कि बैल उसी रात मर गया। उन्होंने कहा कि वह जंगल में उसका अंतिम संस्कार करके लौट रहे हैं।
दूसरी ओर, संजीवक जंगल की ताजी हवा और हरी-भरी घांस खाकर दिन-प्रतिदिन बेहतर होता जा रहा था। वह दिन-रात उस जंगल में खाता-पीता और मौज-मस्ती करता और रात को नदी किनारे जाकर सो जाता। इस प्रकार कुछ ही दिनों में वह मोटा-ताजा हो गया। उसे देखकर ऐसा लगता था कि यह बैल वास्तव में इस जंगल का राजा है।
कुछ दिनों के बाद जब पिंगलक नाम का एक सिंह अपनी प्यास बुझाने के लिए जंगली जानवरों के साथ उस नदी के पास पानी पीने आया, तो संजीवक ने जोर से दहाड़ लगाई, जिसकी आवाज से पूरा जंगल गूंज उठा।
पिंगलक ने ऐसी भयानक आवाज कभी नहीं सुनी थी। भयभीत होकर वह बिना पानी पिए ही नदी से भाग गया। अन्य जानवर भी उसके पीछे भाग निकले। सभी जंगल में एक जगह छिपकर बैठ गये।
उसी जंगल में इस सिंह के पूर्व मंत्री के दो पुत्र करटक और दमनक भी रहते थे। प्यासे शेर को नदी तट से लौटते देख दमनक ने कहा – “भाई करटक, हमारा स्वामी नदी तट से प्यासा ही लौटा है। जंगल का राजा होकर भी वह पानी नहीं पी सका। इस डर का क्या कारण हो सकता है?”
करटक ने कहा – “भाई दमनक, हमें इन बातों की क्या परवाह है? बड़े-बुजुर्गों का कहना था कि जो व्यक्ति बेवजह दूसरों के काम में दखल देता है, वह बेमौत मरता है। उदाहरण के लिए, तुमने उस बंदर की कहानी तो सुनी होगी जिसने लकड़ी में से कील निकाली थी।”
“नहीं भाई, मैंने उसकी कहानी नहीं सुनी है।”
“नहीं सुना तो आज ही सुन लो। मैं तुम्हें एक ऐसे बंदर की कहानी सुनाता हूं जो बेवजह दूसरों के काम में टांग अड़ाता था और…”
आइये इस बंदर की कहानी जानें – न राजा बिना सेवक, न सेवक बिना राजा।