Jagannath Rath Yatra 2024: जगन्नाथ जी को ‘ब्रह्मांड का भगवान’ माना जाता है। भगवान जगन्नाथ भारत और पूरी दुनिया में भक्तों द्वारा पूजे जाने वाले एक हिंदू देवता हैं। ओड़िशा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ का मंदिर मौजूद है। इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के अलावा उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी विराजमान हैं। जगन्नाथ पुरी को चार धामों में से एक धाम माना जाता है।
हर साल पुरी शहर में बहुत ही धूमधाम से जगन्नाथ रथ यात्रा आयोजित की जाती है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र, और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा जगन्नाथ पुरी मंदिर से शुरू होती है। आज हम आपको जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024 में कब होगी, इसका महत्व, और इससे जुड़े कुछ अन्य तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं।
पुरी जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Mandir, Puri, Orissa)
12वीं शताब्दी में ओडिशा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ के मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर में जो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति स्थापित है उसका निर्माण लकड़ी से किया गया है। इस मूर्ति को हर 12 साल में बदल दिया जाता है।
भगवान जगन्नाथ का पुरी मंदिर अपनी चमत्कारिक शक्तियों के कारण दुनिया भर में मशहूर है। कोई पक्षी या हवाई जहाज इस मंदिर के ऊपर से नहीं उड़ता है। साथ ही इस मंदिर के ऊपर लगा झंडा हमेशा हवा की उलटी दिशा की ओर फहरता है। मान्यताओं के अनुसार पक्षियों के राजा गरुड़ खुद भगवान की देख-रेख करते हैं। इसीलिए दूसरे पक्षी मंदिर के ऊपर से नहीं गुजरते।
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा तिथि (Jagannath Puri Rath Yatra Date in Hindi)
वैदिक पंचांग में बताया गया है कि, इस साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 07 जुलाई, 2024 को प्रातः 04:26 मिनट पर शुरू होकर 08 जुलाई, 2024 को प्रातः 04:59 मिनट पर समाप्त होगी। पंचांग के मुताबिक उदया तिथि के अनुसार 2024 में 7 जुलाई से जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत होगी। यह रथ यात्रा 7 जुलाई से 16 जुलाई तक चलेगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई को सुबह 08:05 मिनट से शुरू होकर सुबह 09:27 मिनट पर समाप्त होगी।
इसके पश्चात् रथ यात्रा दोपहर 12:15 मिनट से दोबारा शुरू होकर 01:37 मिनट पर खत्म होगी।
इसके बाद रथ यात्रा शाम 04:39 मिनट से यात्रा शुरू होकर 06:01 मिनट पर खत्म होगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Jagannath Rath Yatra Ka Mahatva)

जगन्नाथ पुरी को चार धामों में से एक माना जाता है। देश विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आते हैं। मान्यताओं के अनुसार जगन्नाथ मंदिर में दर्शन और पूजा-पाठ करने से भक्तों के जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति इस शुभ रथ यात्रा में हिस्सा लेता है उसे 100 यज्ञों के बराबर पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने भक्तों के मध्य विराजमान रहते हैं।
भक्त जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के साथ ढोल बजाते हुए चलते हैं। कई भक्त इस दौरान मन्त्रों का उच्चारण करते रहते हैं। मान्यताओं के अनुसार जो लोग पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ इस रथ यात्रा में हिस्सा लेता है, उसे मरने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुरी रथ यात्रा में हिस्सा लेने से मनुष्य द्वारा अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों मनाई जाती है (Jagannath Rath Yatra Kyun Manai Jati Hai)
भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा तिथि के दिन गर्भगृह से बाहर लाकर स्नान करवाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार भगवान जगन्नाथ की तबियत ख़राब हो जाती है और उन्हें बुखार आ जाता है।
तबियत ख़राब होने के कारण भगवान जगन्नाथ 15 दिनों तक अपने शयन कक्ष में आराम करते हैं। इस दौरान भक्त भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकते हैं। बाद में आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ की तबियत ठीक हो जाती है और वो विश्राम कक्ष से बाहर आते हैं। भगवान के स्वस्थ होने की खुशी में भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव (Jagannath Rath Yatra Utsav)
रथ यात्रा उत्सव मनाने के लिए सभी भक्त भगवान कृष्ण, भगवान बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर ले जाते हैं। गुंडिचा मंदिर ले जाने के बाद रथों में मूर्तियों की स्थापना की जाती है। इसके बाद पुजारी एक प्रथा, स्नान पूर्णिमा मनाते हैं। इस प्रथा के मुताबिक तीन मूर्तियों को पानी (109 बाल्टी) से स्नान करवाया जाता है। स्न्नान करवाने के बाद इन मूर्तियों को जुलूस के दिन तक अलग रखा जाता है। इस रस्म को अंसारा कहते है। ओडिशा के शाही उत्तराधिकारी चेरा पहरा की रस्म निभाते हुए राजा देवताओं को रथों पर रखता है। मान्यताओं के अनुसार अगर कोई मनुष्य पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ इस उत्सव में हिस्सा लेता है तो वो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए पुरी पहुंचने के रास्ते (Jagannath Rath Yatra Ke Liye Puri Kaise Pahunche)

- अगर आप रथ यात्रा में भाग लेने सड़क मार्ग से पुरी जाना चाहते हैं तो त्यौहार के दौरान विशेष बस सेवा चलती है। आप कटक और भुवनेश्वर से पुरी के लिए बसें ले सकते हैं। यहाँ त्यौहार के दौरान 10-15 मिनट के अंतराल पर बसें चलती हैं। इसके अलावा विशाखापत्तनम और कोलकाता से सीधी बस सेवा भी चालू रहती है। भक्त पुरी जाने के लिए किराये पर टैक्सी भी ले सकते हैं।
- पुरी शहर का सबसे नजदीकी बीजू पटनायक हवाई अड्डा 60 किमी की दूरी पर मौजूद है। आप किराये की टैक्सी लेकर आसानी से इस दूरी को तय कर सकते हैं। बीजू पटनायक हवाई अड्डे से चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता, नागपुर, विशाखापत्तनम आदि सहित विभिन्न शहरों की यात्रा की जा सकती है।
- आप रेल द्वारा भी रथ यात्रा में हिस्सा लेने के लिए पुरी जा सकते हैं। पुरी से मुंबई, अहमदाबाद, दिल्ली, ओखा आदि सहित अन्य भारतीय शहरों के लिए सीधी एक्सप्रेस ट्रेने चलती हैं।
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा कितने दिन चलती है?
हर साल आषाढ़ मॉस की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन रथ यात्रा निकाली जाती है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष के 11वें दिन भगवान जगन्नाथ वापस आते हैं और इस यात्रा की समाप्ति हो जाती है।
जगन्नाथ भगवान के हाथ पैर क्यों नहीं हैं?
भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा तीनो की मूर्ति में से किसी के भी हाथ और पैर के पंजे नहीं है। पौराणिक धर्म ग्रंथों में जानकारी देते हुए बताया गया है कि विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति बनाने का कार्य कर रहे थे। विश्वकर्मा ने शर्त रखी थी कि जब तक वो मूर्ति बनाएंगे तब तक कोई भी उनके काम में बाधा नहीं डालेगा, नहीं तो वो काम रोक देंगे। पर राजा ने मूर्तियों को देखने की इच्छा के कारण दरवाजा खोल दिया। इसलिए विश्वकर्मा ने काय बीच में ही रोक दिया और मूर्ति के निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। इसी वजह से तीनों मूर्तियों के हाथ और पैर के पंजे नहीं है।