Site icon bhaktiaanand.com

Buzdil Mat Bano: पढ़िये पंचतंत्र की कहानी जो देती है बहादुरी का पाठ

Buzdil Mat Bano:

Panchatantra Story Buzdil Mat Bano: पंचतंत्र की रचना पं. विष्णु शर्मा द्वारा की गयी थी। यह बहुत सारी कथाओं का एक संग्रह है जिनसे व्यक्ति को मानव व्यव्हार और कौशल निर्माण की विविध शिक्षाएं मिलती हैं। पंचतंत्र में बहुत सारी कथाएँ हैं जिनमे ज़्यादातर कथाओं के पात्र जीव-जंतु हैं। यह बच्चों को रोचक तरीके से महत्त्वपूर्ण सबक और शिक्षा देने का सर्वश्रेष्ठ साधन है।

आज के लेख में हम आपके लिए पंचतंत्र के पहले भाग की तीसरी कथा लाये हैं जिसका शीर्षक है – बुज़दिल मत बनो। यह कथा पंचतंत्र की दूसरी कथा – ‘न राजा बिना सेवक, न सेवक बिना राजा‘ के आगे से प्रारंभ होती है।

पंचतंत्र की कहानी बुज़दिल मत बनो (Panchatantra Story Buzdil Mat Bano)

दमनक ने कहानी शुरू की।

एक बार एक गीदड़ खाने की तलाश में जंगल में घूम रहा था। वह बेचारा बहुत दिनों से भूखा था। उस जंगल में दो सेनाएँ लड़ रहीं थी। दोनों सेनाओं के बीच के क्षेत्र में एक नगाड़ा रखा था। गीदड़ उस नगाड़े को ऊंचे स्थान पर रखा देखकर कुछ देर के लिए वहीं रुक गया।

देखते ही देखते हवा के तेज प्रवाह से नगाड़ा नीचे गिर गया। फिर आस-पास के पेड़ों में लटकी डालियाँ हवा से उसे नगाड़े पर गिरने लगीं और उसमें से आवाज आने लगी। गीदड़ इन ध्वनियों को सुनकर भयभीत हो गया और सोचने लगा – “अब क्या होगा? क्या मुझे यहाँ से भगाना होगा?”

“नहीं..नहीं.. मैं अपने पूर्वजों के इस जंगल को छोड़कर नहीं जा सकता। जाने से पहले मुझे इस आवाज का रहस्य तो मालूम करना ही होगा।” यह सोचकर वह धीरे-धीरे उसे नगाड़े के पास चला गया और बहुत देर तक नगाड़े को देखने के पश्चात वह सोचने लगा कि यह तो बहुत बड़ा है। इसमें शक्ति भी बहुत है और इसका पेट भी बहुत बड़ा है। इसको चीरने से तो बहुत चर्बी और मांस खाने को मिलेगा। “वाह-वाह! अब तो खूब मज़ा आएगा खाने में।”

यह सोचकर उस गीदड़ ने नगाड़े के चमड़े को फाड़ दिया और उसके अंदर घुस गया। वहाँ क्या था? “ढोल का पोल!” उस गीदड़ के हाथ कुछ भी नहीं आया और वह बहुत मायूस हुआ। नगाड़े को फाड़ने के चक्कर में उस गीदड़ के कुछ दांत भी टूट गए थे। वह उस नगाड़े से डर रहा था पर यहाँ तो कुछ भी नहीं हुआ। वह खुद से कहने लगा, देखो केवल आवाज से ही नहीं डरना चाहिए। व्यक्ति को कभी बुज़दिल नहीं बनना चाहिए। इसलिए बुजदिल मत बनो!

शेर ने दमनक की ओर देखा और कहा, “देखो भद्र! मेरे सारे साथी इस समय बहुत डरे हुए हैं। वह सब के सब भाग जाना चाहते हैं, तो बताओ मैं अकेला क्या करूं?”

दमनक ने कहा, “यह दोषी नहीं हैं मालिक, आप तो जानते हैं – जैसा राजा, वैसी प्रजा। फिर घोड़ा, शास्त्र, शस्त्र, वाणी, वीणा, नर और नारी ये सब व्यक्ति विशेष को पाकर योग्य और अयोग्य होते हैं। इसलिए आप तब तक यहीं रहिये, जब तक मैं पूरी सच्चाई का पता लगाकर वापस न आऊं।”

पिंगलक – “क्या तुम वहाँ जाने की सोच रहे हो?”

दमनक – “जी महाराज, एक अच्छे और वफादार सेवक का जो कर्तव्य है, मैं उसे पूर्ण करूंगा। कहते हैं कि अपने मालिक का कहा मानने में कभी झिझकना नहीं चाहिए। चाहे फिर सांप के मुॅंह में या सागर की गहराई में ही क्यों न जाना पड़े। अपने मालिक के आदेशों के लिए जो सेवक यह नहीं सोचता कि यह कठिन है या सरल, वही महान होता है।”

पिंगलक दमनक की बात सुनकर खुश हो गया और  उसकी पीठ थपथपाते हुए बोला, “यदि यही बात है तो जाओ, ईश्वर तुम्हें इस कार्य में सफल करें।”

“धन्यवाद मेरे मालिक! ईश्वर ने चाहा तो मैं सफल होकर ही वापस आऊंगा।” यह कहकर दमनक उसी जगह की ओर चल दिया जहाँ से उसे बैल की आवाज़ सुनाई दी थी।

पिंगलक के विचार

दमनक के चले जाने के पश्चात पिंगलक सोचने लगा कि मैंने यह ठीक नहीं किया जो दमनक को अपने सारे राज़ बता दिए। कहीं यह दुश्मन का जासूस न हो, या दोनों पक्षों को बेवकूफ़ बनाकर अपना स्वार्थ न सिद्ध कर रहा हो। यह भी हो सकता है कि यह मुझसे बदला लेना चाहता हो क्योंकि मैंने इसे पद से हटाया था।

इस बारे में कहा गया है, जो लोग राजा के यहाँ पहले ऊंचे पद पर होते हैं और बहुत सम्मान पाते हैं, अगर उन्हें इस पद से हटा दिया जाए तो वह अच्छे होने के बावजूद भी उस राजा के दुश्मन बन जाते हैं। वह अपने अपमान का बदला लेना चाहते हैं। अब मैं उस दमनक को जांचने-परखने के लिए यहाँ से जाकर दूसरी जगह पर रहना शुरू कर देता हूँ। यह भी हो सकता है की दमनक शत्रु के साथ मिलकर मुझे मरवा ही डाले।

ऐसे लोगों के बारे में कहते हैं, विश्वास न करने वाले कमज़ोर प्राणी ताकतवर से भी नहीं मारे जाते। तथा कभी-कभी ताकतवर व्यक्ति भी विश्वास करने पर निर्बल के हाथों से मारे जाते हैं। कसमें खाकर संधि करने वाले दुश्मन का भी कभी विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि राज्य प्राप्त करने के लिए आतुर वृत्रासुर सौगंध द्वारा ही इंद्र से मारा गया था। देवताओं का शत्रु भी बिना विश्वास दिलाए काबू में नहीं होता। इंद्र ने इसी विश्वास के धोखे से तो दीति के गर्भ को नष्ट किया था।

यह सब सोचता हुआ पिंगलक दमनक के रास्ते को देखते हुए एक नए स्थान पर जाकर बैठ गया।

दमनक की बैल से मुलाकात

दमनक बैल के पास पहुँचने पर दिल ही दिल में खुश हो रहा था, क्योंकि उसे अपने पुराने मालिक को प्रसन्न करने और अपनी खोई इज्जत वापस हासिल करने का एक अच्छा मौका मिला था।

बैल से मिलकर वह वापस अपने मालिक के पास जाते हुए विचार करने लगा कि विद्वानों ने ठीक ही कहा है, राजा मंत्रियों के कहने पर उसे समय तक उदारता और सच्चाई का मार्ग पर नहीं चलता जब तक वह खुद दुख का अनुभव न कर ले। दुख और संकट में फंसकर ही राजा को वास्तविकता पता चलती है। इसलिए मंत्री दिल से चाहते हैं कि राजा कभी तो दुख का अनुभव करे। जैसे स्वस्थ प्राणी किसी अच्छे वैध को नहीं चाहता है, उसी प्रकार दुखों और विपत्तियों से बचा हुआ राजा किसी गुणवान मंत्री को नहीं चाहता।

दमनक पिंगलक के समक्ष लौटा

यह सोचता हुआ दमनक वापस पिंगलक के पास जाता है। पिंगलक भी दूर से उसे आते हुए देख रहा था। वह पहले से ही किसी आने वाले खतरे का मुकाबला करने के लिए तैयार था। किंतु दमनक को अकेले आते देखकर वह समझ गया था की भय की कोई बात नहीं है।

उसने दमनक से पूछा – “मित्र, तुम उसे भयानक जानवर से मिल आए हो?”

दमनक – “जी हाँ!”

पिंगलक आश्चर्य से पूछता है, “क्या यह सत्य है?”

दमनक – “मालिक, क्या अपको लगता है की आपके समक्ष मैं असत्य बोल सकता हूँ? आपको याद नहीं, जो पुरुष राजा और विद्वानों के आगे झूठ बोलता है वह कितना ही महान क्यों ना हो, शीघ्र नष्ट हो जाता है।”

पिंगलक – “यह सही बात है। तुमने उससे मुलाकात की होगी। बड़े छोटों पर क्रोधित नहीं होते। इस कारण उस भयंकर जीव ने तुम्हें कुछ नहीं कहा।”

दमनक ने कहा, “जी महाराज, वायु कभी नीचे झुके तिनकों और भूमि की घांस को कुछ नहीं कहती। हमेशा बड़े बड़ों पर ही अपनी शक्ति दिखाते हैं। जैसे मस्त भवरां जब किसी हाथी के कान के पास जाकर अपना राग अलापता है, तो वह हाथी कभी उसे भवरे पर गुस्सा नहीं करता क्योंकि बलवान सदा बलवान पर गुस्सा करता है।

पिंगलक – “ठीक है मित्र, मैं तुम्हारी बातों से प्रसन्न हुआ। अब तुम उस भयानक जीव के बारे में भी तो कुछ बताओ जिसकी आवाज़ से ही जंगल का काँप उठता है।”

दमनक – “जी मालिक, अगर आप आज्ञा दें तो मैं उस भयंकर जीव को भी आपकी सेवा में लगा दूं?”

पिंगलक ने एक ठंडी सांस भरते हुए कहा – “क्या यह संभव है?”

दमनक बोला – “जी महाराज, बुद्धिमत्ता से इस विश्व में क्या प्राप्त नहीं किया जा सकता? यह बात भी सत्य है की दिमाग द्वारा जो काम बन सकता है वह बल और हथियारों से नहीं बनता।”

पिंगलक ने कहा – “अगर तुम ऐसा करके दिखा सको दमनक, तो मुझे अत्यंत प्रसन्नता होगी। मैं तुम्हारी कही बातों से बहुत प्रभावित हूँ। मैं तुम्हें आज से ही मंत्री के रूप में नियुक्त करता हूँ। अब मेरे सारे काम को तुम ही देखा करोगे।”

दमनक – “धन्यवाद महाराज! मैं आपको वचन देता हूँ कि मैं आपकी सेवा सच्चे मन से करूंगा। आप मुझे आशीर्वाद दें कि मैं उस भयानक जीव को अपने रास्ते से हटा सकूं।”

पिंगलक – “जाओ दमनक! मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।”

दमनक अपने पुराने मालिक और अपने पद को पुनः पाकर बहुत खुश हुआ। वह सीधा उस बैल के पास पहुंच गया।

अब होगी बैल और शेर की भेंट

जाते ही दमनक बैल से बोला – “ओ दुष्ट बैल! मेरे मालिक पिंगलक तुझे बुला रहे हैं।”

उसकी बात सुनकर बैल बड़े आश्चर्य से पूछता है – “मित्र, यह पिंगलक कौन हैं?”

दमनक – “अरे, तू पिंगलक को नहीं जानता? आश्चर्य है! तुझे इस जंगल में रहकर भी यह भी नहीं मालूम कि सामने उस बड़ के पेड़ के नीचे पिंगलक नामक शेर रहता है।”

बैल उसके मुंह से शेर का नाम सुनकर डर गया। फिर भी स्वयं को संभालता हुआ बोला – “देखो मित्र, यदि तुम मुझे अपने मालिक के समक्ष ले जाना चाहते हो तो मेरी रक्षा की पूरी जिम्मेदारी तुम्हारी होगी।”

दमनक बोला – “हाँ हाँ मित्र। तुम सही कह रहे हो। मेरा भी यही मानना है। क्योंकि धरती, सागर और पर्वत का तो अंत पाया जा सकता है, पर राजा के दिल का भेद आज तक कोई नहीं जान पाया। इसलिए तुम उसे समय तक यहीं पर रुको जब तक मैं अपने मालिक से सारी बात करके वापस ना लौटूं।”

बैल ने उत्तर दिया – “ठीक है मित्र! मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।”

शंकर की सवारी बैल, तो दुर्गा का वाहन शेर

दमनक बैल को वहीं छोड़कर खुशी से उछलता हुआ वापस पिंगलक के पास पहुंचा। पिंगलक भी दमनक को आते देख कर खुश था।

पिंगलक ने प्रश्न किया – “कहो मंत्री दमनक, क्या समाचार लाए हो?”

दमनक – “महाराज, वह कोई आम बैल नहीं है। वह तो शिव जी का सवारी है! स्वयं शिव जी ने उसे इस वन में घास खाने के लिए भेजा है।”

पिंगलक आश्चर्यचकित होकर बोला, “अब मुझे सारी बात ठीक-ठाक पता चल गई है। यह बैल इस जंगल में किस कारण आया है। इसके पास देवताओं की शक्ति है। अब यहाँ के जीव-जंतु उसके आगे स्वतंत्रता से नहीं घूम सकते। लेकिन मंत्री तुमने उससे कहा क्या?”

दमनक ने कहा – “महाराज, मैंने उससे बताया कि यह वन दुर्गा जी के वाहन, मेरे महाराज पिंगलक के अधिकार में है। अर्थात आप हमारे मेहमान हैं और मेहमान की सेवा-सतकार करना हमारा परम धर्म है। इसलिए मैं अपने राजा की ओर से आपसे आग्रह करता हूँ कि आप हमारे साथ रहें।”

पिंगलक – “वह क्या बोला?”

दमनक – “वह मेरे साथ आपके पास आने को राज़ी हो गया। अब तो मैं केवल आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। आप आज्ञा दें तो उसे आपके समक्ष ले आऊं?”

पिंगलक – “दमनक तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी! मैं बहुत प्रसन्न हूँ। अब तुम उसे शीघ्र मेरे पास ले आओ। मुझे तो यह बात याद आती है, जैसे शक्तिशाली खम्भों पर महल खड़ा किया जाता है, वैसे ही एक बुद्धिमान मंत्री के कंधों पर राज्य का बोझ डाला जाता है।”

दमनक कराएगा शेर और बैल की मित्रता

दमनक राजा के मुंह से अपनी तारीफ़ सुनकर बहुत प्रसन्न हो गया और फिर वहाँ से वापस उस ही बैल की ओर चल दिया। वह बैल दमनक की बात को सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और शेर का निमंत्रण पाकर बोला, “जैसे शीत में अग्नि अमृत है वैसे ही अपने मित्र से भेंट अमृत है। दूध की  बनी खीर अमृत है, और इसी प्रकार राज सम्मान भी अमृत है। हम मित्र पिंगलक के पास चलने के लिए तैयार हैं।”

दमनक ने बैल से कहा, “देखो मित्र! मैं तुम्हें वहाँ पर ले जा रहा हूँ तथा मैंने ही शेर से तुम्हारी मित्रता करवाई है। इसलिए तुम मुझे यह वचन दो कि तुम सदा मेरे मित्र बने रहोगे। राजा हमेशा राजा रहता है, मंत्री सदैव मंत्री, किंतु शिकारी की नीति से राज्य वैभव मनुष्य के बस में हो जाता है। एक तो प्रजा को प्रेरित करता है और दूसरा यानि शिकारी, मृगों की भाँती उसे मार देता है।”

“जो व्यक्ति घमंड के कारण उत्तम, मध्यम और निम्न, इन तीनों प्रकार के इंसानों का उचित सत्कार नहीं करता वह नरेश से आधार पाकर भी दन्तिल के समान भ्रष्ट हो जाता है।”

बैल ने पूछा,”ये कैसे भाई?”

दमनक ने कहा – “आओ तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ – ना कोई छोटा, ना कोई बड़ा।”

आगे दमनक ने बैल को एक और कथा सुनाई।

इस प्रकार पंचतंत्र की कहानी से शिक्षा मिलती है की इस संसार में कौन अपना है और कौन पराया। जीवन में व्यक्ति को कैसी समस्याएं देखनी पड़ सकती हैं और उन्हें कैसे समझा जा सकता है, इस प्रकार की कई मुख्य शिक्षाएं हमें पंचतंत्र की कथाओं से मिलती हैं।

Exit mobile version